Anti-Conversion law: धर्मांतरण के सभी मामले अवैध नहीं, हाईकोर्ट के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार की याचिका सुनेगी सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण कानून पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई की सहमति दे दी है। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि धर्मांतरण के सभी मामलों को अवैध नहीं माना जा सकता।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला कलेक्टर की इजाजत के बगैर अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों पर मुकदमा चलाने से राज्य सरकार को रोक दिया है। इसे राज्य सरकार ने शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठने मामले में नोटिस जारी करते हुए आगे सुनवाई के लिए 7 फरवरी की तारीख तय की।
हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से किया इनकार
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मप्र हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया। मेहता ने कहा कि अवैध धर्मांतरण के लिए शादियां की जा रही हैं और इस पर हम आंखें बंद कर बैठ नहीं सकते।
मप्र हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह सहमति से अंतर धार्मिक शादी करने वाले वयस्कों पर मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता कानून (MPFRA) की धारा 10 के तहत मुकदमा न चलाए।
मप्र हाईकोर्ट ने 14 नवंबर को कहा था उक्त कानून की धारा 10 असंवैधानिक है। इस धारा के तहत धर्मांतरण के इच्छुक नागरिकों को जिला कलेक्टरों की पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य है। मप्र धार्मिक स्वतंत्रता कानून के तहत झूठ बोलकर या झांसा देकर, प्रलोभन, धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती शादी करने या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को प्रतिबंधित किया गया है।
इस कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली सात याचिकाओं पर मप्र हाईकोर्ट ने उक्त अंतरिम आदेश दिया है। याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने से मप्र सरकार को रोकने के लिए अंतरिम राहत का आग्रह किया था।