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Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से टूट गई गैस पीड़ितों की सारी उम्मीदें, जानिए कब-कब क्या-क्या हुआ

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस क्येरिटव पिटीशन यानी उपचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें केंद्र ने भोपाल गैस त्रासदी को लेकर डाउ केमिकल्स से अतिरिक्त मुआवजे की मांग की थी। इससे गैस पीड़ितों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई जनवरी में पूरी कर ली थी। फैसला सुरक्षित रखा था और मंगलवार को यह फैसला सुनाया गया। 

केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से अधिक बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट हर्जाना बढ़ाने को मान जाता तो इसका लाभ भोपाल के लाखों गैस पीड़ितों को भी मिलता। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और साफ कर दिया कि यूनियन कार्बाइड की पैरेंट कंपनी डाउ केमिकल्स से जो वन-टाइम डील 1989 में हुई थी, उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता। 

यह था मामला 

भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात को यूनियन कार्बाइड (अब डाउ केमिकल्स) की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ था। इससे सैकड़ों मौतें हुई थी। हादसे के 39 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एसके कौल की संविधान पीठ ने 1989 में तय किए गए 725 करोड़ रुपये हर्जाने के अतिरिक्त 675.96 करोड़ रुपये हर्जाना दिए जाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह याचिका केंद्र सरकार ने दिसंबर 2010 में लगाई थी और अब करीब 13 साल बाद फैसला आया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में डाउ केमिकल्स ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह एक रुपया भी और देने को तैयार नहीं है।

यह था अतिरिक्त मुआवजा मांगने का आधार

सुप्रीम कोर्ट ने चार मई 1989 को फैसला सुनाया था कि यूनियन कार्बाइड को गैस त्रासदी के लिए 470 मिलियन डॉलर यानी उस समय 725 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। उसका आधार यह था कि हादसे में 3,000 लोगों की मौत हुई है और करीब दो लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। हालांकि, वेलफेयर कमिश्नर की 15 दिसंबर 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक भोपाल गैस त्रासदी की वजह से 5,479 लोग मारे गए हैं। 1989 में मुआवजे का आधार बना था कि बीस हजार लोग स्थायी विकलांग हुए हैं जबकि पचास हजार को मामूली चोटें आई हैं। हालांकि, यह आंकड़ा बढ़कर क्रमशः 35 हजार और 5.27 लाख हो गया। यानी चार मई 1989 को कुल पीड़ित 2.05 लाख थे, जो बढ़कर 5.74 लाख हो चुके हैं।

यूनियन कार्बाइड ने किया है विरोध

यूनियन कार्बाइड को डाउ केमिकल्स ने खरीद लिया था और सुप्रीम कोर्ट में उसकी ओर से पैरवी वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने की। उन्होंने कोर्ट में कहा कि सेटलमेंट में इस केस को दोबारा खोलने का प्रावधान ही नहीं था। अब तक यूनियन कार्बाइड की हादसे के संबंध में जवाबदेही भी स्थापित नहीं हुई है। इस वजह से उस पर मुआवजे का अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जा सकता।

इस मामले में कब क्या हुआ

  • 2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई।
  • 4 मई 1989 को सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी से 470 मिलियन डॉलर हर्जाना लेने का आदेश सुनाया।
  • 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की रिव्यू पिटीशन खारिज की। हर्जाना बढ़ाने की मांग खारिज हुई थी। कहा था कि अतिरिक्त मुआवजा केंद्र सरकार को देना होगा।
  • 22 दिसंबर 2010 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन लगाई। इसमें अतिरिक्त हर्जाना मांगा गया था। 
  • 14 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने इस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया। 

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