
गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद की नगर पालिका में शुक्रवार की सुबह अचानक सब कुछ ठहर-सा गया, जब एसीबी की टीम ने इंजीनियर संजय मोटवानी को रंगे हाथ पकड़ लिया। वह भी उस वक्त, जब वे ठेकेदार से 30 हजार रुपए रिश्वत लेकर अपनी कार की डैशबोर्ड में रखने ही वाले थे। पल भर में आम दिन एक ऑपरेशन में बदल गया—और नगर पालिका के गलियारों में सनसनी फैल गई।
शिकायत से लेकर जाल बिछने तक – पर्दे के पीछे की कहानी
इस कार्रवाई की शुरुआत तब हुई जब स्थानीय ठेकेदार अजय गायकवाड़ ने एसीबी में लिखित शिकायत दर्ज कराई। उनका आरोप था कि उनके निर्माण कार्यों के बिल पास करने के लिए इंजीनियर मोटवानी ने पहले एक लाख रुपए की मांग की थी। लंबे समय से टल रहे भुगतान के दबाव में ठेकेदार ने रिश्वत मांगने की यह बात एसीबी को बताई, जिसके बाद टीम ने शांत लेकिन बेहद रणनीतिक तरीके से ट्रैप ऑपरेशन तैयार किया।

साईं गार्डन के पास तय हुआ था सौदा
ठीक उसी जगह—साईं गार्डन के पास—समय तय किया गया। ठेकेदार मौके पर पहुंचा और जैसे ही आरोपी इंजीनियर ने 30 हजार की रकम लेकर उसे कार के अंदर रखवाया, एसीबी टीम ने पहले से घेराबंदी की हुई थी। पल भर में अधिकारी आगे बढ़े और मोटवानी को वहीं दबोच लिया।
कौन-कौन से काम के लिए मांगी जा रही थी घूस? जांच शुरू
गिरफ्तारी के बाद एसीबी अधिकारी आरोपी इंजीनियर को नगर पालिका कार्यालय लेकर गए, जहां उससे पूछताछ की जा रही है कि—
- किन-किन निर्माण कार्यों में देरी की गई?
- क्या उससे पहले भी किसी से पैसा वसूला गया?
- बिल पास करने की इस ‘दर प्रणाली’ में और कौन शामिल हो सकता है?
सूत्रों का कहना है कि टीम अब संबंधित दस्तावेज, पिछले भुगतान और फाइलों की जांच करेगी।
इलाके में चर्चा—‘कौन आगे आएगा, कौन बेनकाब होगा?’
इस कार्रवाई ने नगर पालिका में कामकाज की पारदर्शिता पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। ठेकेदारों के बीच यह चर्चा भी गर्म है कि—क्या यह अकेला मामला है या किसी बड़े नेटवर्क की सिर्फ एक कड़ी?
एसीबी की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, कई और परतें खुल सकती हैं। फिलहाल इतना साफ है कि इंजीनियर मोटवानी का गिरफ़्तार होना प्रशासनिक तंत्र के भीतर पल रही भ्रष्ट मानसिकता पर सीधी चोट है।

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