
गिरीश जगत की रिपोर्ट। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक की स्कूल इमारतों की हालत बता रही है कि शिक्षा विभाग, ट्राइबल विभाग और प्रशासन के लिए बच्चे नहीं… सिर्फ बजट ही मायने रखता है। बाहर से दीवार चमकती दिखती है, पर अंदर खिड़की-दरवाजे तक नहीं। सिर्फ दिखावे की पुताई, साइन बोर्ड और फर्जी प्रोग्रेस रिपोर्ट—यही है सरकारी जतन योजना का असली चेहरा।
2022 में स्वीकृत 14 लाख की इमारत का 80% पैसा ठेकेदार को दे दिया गया। पर काम? ज़मीन पर सिर्फ 20%। सरकारी रिकॉर्ड में भवन “पूर्ण” दिखता है, लेकिन असलियत में बच्चे डर के कारण पुराने, दूर पड़े स्कूल तक नहीं जा पा रहे। मजबूर होकर पालकों ने चंदा इकट्ठा किया—सरकारी स्कूल नहीं, चंदे का स्कूल।
मैनपुर ब्लॉक में स्कूलों की दीवारें बाहर से चमक रही हैं, लेकिन अंदर उनकी हकीकत सरकारी सिस्टम के चेहरे पर करारा तमाचा है। स्कूल जतन योजना के नाम पर करोड़ों बहा दिए गए—पर परिणाम? 80 प्रतिशत भवन आज भी अधूरे, खिड़कियाँ-दरवाजे गायब, फ्लोरिंग अधूरी, और बच्चे जान जोखिम में डालकर दूर-दराज़ पढ़ने को मजबूर।
कागज पर सब “पूर्ण”… जमीन पर सब “अधूरा”—सरकारी अफसरों और विभागों की यह मिलीभगत आज मैनपुर की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे बड़ा धब्बा बनकर खड़ी है।

बाहर रंगाई-पुताई करके “पूर्ण भवन” घोषित—अंदर ईंट, गारा और भ्रष्टाचार की बदबू
नयापारा प्राथमिक शाला का मामला इस फर्जीवाड़े की सबसे शर्मनाक मिसाल है।
यहां 2022 में स्कूल जतन के तहत 14 लाख का अतिरिक्त भवन मंजूर हुआ। काम शुरू हुआ, 80% रकम रिलीज भी हो गई… लेकिन पूरा क्या हुआ? बस सामने की दीवार पर पुताई कर दी गई। एक बोर्ड लगा दिया गया—और फाइलों में भवन को “पूर्ण” टिका दिया गया।
अंदर क्या है?
- न खिड़की
- न दरवाजे
- न प्लास्टर
- न फ्लोरिंग
यानी बच्चा तो क्या, एक बकरी भी नहीं रह सके—ऐसा “पूर्ण भवन”।
पर सरकार और प्रशासन के लिए यह भवन “पूरा” है। अगर यह पूरा है, तो अधूरा कैसा दिखेगा? यही सवाल इस पूरे सिस्टम को नंगा कर देता है।

जब सरकार भागी, तो गांव ने जिम्मेदारी उठाई—पालक चंदा कर स्कूल पूरा कर रहे हैं
सबसे बड़ा अपमान यह कि आज गांव के लोग 500–500 रुपए चंदा देकर स्कूल पूरा कर रहे हैं।
गांव के उपसरपंच नरमल नागेश की बातें इस सिस्टम को आईना दिखाती हैं—
- गांव के 45 बच्चे पढ़ाई करते हैं
- वार्ड 5 का पुराना स्कूल दूर है
- कुत्तों का आतंक बढ़ गया—बच्चे स्कूल जाना बंद
- नया भवन वार्ड 12 में है, पर अधूरा छोड़ दिया गया
सरकार लाचार, सिस्टम बहरा—तो ग्रामीणों ने खुद जिम्मेदारी उठाई।
अब तक:
- 4 दरवाजे लगाए
- फ्लोरिंग करा ली
- 40 हजार खर्च हुए—पर चंदा सिर्फ 15 हजार जुटा पाए
और ठेकेदार?
फोन नहीं उठाता।
पहले बोला—“जहां जाना है जाओ… खर्च जहां करना था कर दिए… अब कोई काम नहीं होगा।”
यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं—यह गरीब बच्चों के भविष्य का खुलेआम शोषण है।

16 करोड़ मंजूर, 9.94 करोड़ इस्तेमाल… और 97 स्कूल अधूरे—पैसा गया कहां?
मैनपुर ब्लॉक में स्कूल जतन के लिए 16 करोड़ रुपए मंजूर हुए थे।
इसके बाद:
- 114 कार्य स्वीकृत
- 9.94 करोड़ खर्च
- और फिर भी 97 कार्य आज भी अधूरे!
ये कैसे संभव है कि:
- पैसा खर्च हो गया,
- काम नहीं हुआ
- और कोई जिम्मेदार नहीं?
मगर रोड़ा, देवडोंगर, जयंती नगर—60 से अधिक स्कूलों की कहानी एक जैसी है।
सामने की दीवार चमकती है, अंदर काम का 50–80% बाकी।
यह प्रशासन की लापरवाही नहीं—यह संगठित लूट है।

दो विभागों की खींचतान में स्कूलों का दम निकला
मैनपुर ब्लॉक में Tribal Department और Education Department के बीच चल रही खींचतान का सीधा नुकसान बच्चों को हुआ।
9 टेंडर निकले—कोई काम लेने को तैयार नहीं।
आखिर में Tribal Department को ठेका दिया गया। शुरू में काम चला, फिर पैसे रोक लिए गए। शिक्षा विभाग ने पिछले एक साल से 6 करोड़ रुपए अटका रखे हैं।
महत्वपूर्ण सवाल—जब पैसा ही नहीं दिया गया, तो 9.94 करोड़ खर्च कैसे दिखे?
इस सवाल का जवाब ही पूरा भ्रष्टाचार उजागर कर देता है।
“ठेकेदार भाग गया, अधिकारी चुप”—यह नई शासन व्यवस्था है?
कलेक्टर ने कमेटियां बनाई थीं।
रिपोर्टें मांगी गईं।
क्रॉस चेक होना था।
पर हुआ क्या?
- जो एजेंसी बोली, उसे सही मान लिया
- फाइलें आगे बढ़ती गईं
- लाखों-करोड़ों साफ हो गए
- और भवन अधूरे रह गए
अफसर मौन, ठेकेदार गायब—और सरकार शर्मिंदा।

जिला पंचायत अध्यक्ष भड़के—“शासन की छवि धूमिल हो रही है”
जैसे ही मामला जिला पंचायत अध्यक्ष गौरी शंकर कश्यप तक पहुंचा, वे भड़क उठे।
उनके शब्द इस भ्रष्ट सिस्टम की चूलें हिला देते हैं—
- “ये शर्मनाक है”
- “सरकार की छवि धूमिल हो रही है”
- “जतन योजना की सूक्ष्म जांच के लिए कमेटी बनाऊंगा”
- “दोषियों पर एफआईआर दर्ज होगी”
और जब उन्होंने नयापारा जाकर मजदूरों को चंदा देकर निर्माण करते देखा—वे भावुक हो उठे।
उन्होंने अपने एक महीने के वेतन—25 हजार रुपए फ्लोरिंग के लिए दे दिए।
यह कदम नहीं—एक तंज है उस प्रशासन पर जिसे शर्म आनी चाहिए थी।

जमीनी अफसरों की स्वीकारोक्ति—“97 कार्य अधूरे हैं, रिपोर्ट भेज दी है”
BRCC शिव कुमार नागेश ने स्वीकार किया—
- 114 स्वीकृत कार्य में से सिर्फ 17 पूर्ण
- 97 कार्य पूरी तरह अधूरे
- काम कहीं भी चालू नहीं
उच्च कार्यालय केवल रिपोर्ट ले रहा है—काम नहीं कर रहा।
DEO का जवाब—“पैसा रिलीज हुआ पर काम नहीं हुआ, और क्या बताऊं?”
यह जवाब बताता है कि सिस्टम अंदर से कितना खोखला है।
- पैसा रिलीज हुआ
- काम फिर भी बंद है
- बैठक दर बैठक रिपोर्ट भेजते हैं
और जब सवाल कड़ा हो गया—DEO झल्ला उठे:
“और क्या बताऊं कि आप संतुष्ट हो सकेंगे?”
यह बयान नहीं—सरकारी लाचारी की स्वीकारोक्ति है।
श्रम दान करने का वीडियो वायरल होने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष नयापारा पहुंचे। ग्रामीणों से चर्चा कर उनकी आवश्यकता और उठाए गए कदम को देखते हुए भाव विभोर हो गए।फिर बचे हुए दूसरे कमरे की फ्लोरिंग के लिए अपने मानदेय 25 हजार देने की घोषणा कर दिया, फिर मोबाइल लगाकर जिप अध्यक्ष ने शिक्षा अधिकारी और आदिवासी विभाग के अफसर पर बरसे।
उन्होंने कहा कि कहा कि ब्लॉक के 96 अधूरे भवन को जल्द पूरा कराया जाए या तो कार्यवाही के लिए तैयार रहे भाजपा समर्थित जिला पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि अफसरों की करतूतों से सरकार की छवि धूमिल हो रही है।सरकारी भवन को चंदे से पूरा कराना साहस नही ग्रामीणों की मजबूरी है।जिसका सम्मान करता है।इसलिए मैने अपने एक माह का वेतन ग्रामीणों के सम्मान में दिया है।

गरियाबंद के स्कूल नहीं, सरकार की नीतियों का ढांचा अधूरा है
यह कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं, यह कहानी है:
- सरकारी विभागों की खींचतान
- ठेकेदार-अफसर गठजोड़
- बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़
- और गरीब ग्रामीणों पर ढोपी गई मजबूरी की
जब सरकार असफल हो जाए, तो जनता को चंदा करके अपना स्कूल बनाना पड़ता है—
इससे बड़ा तमाचा व्यवस्था के चेहरे पर कोई नहीं।
गरियाबंद के गांवों ने दिखा दिया कि उनकी हिम्मत सरकार से ज्यादा बड़ी है—
और उनका आत्मसम्मान हर आयरन-फ्रेम दरवाजे से मजबूत है
जो उन्होंने खुद के पैसों से लगाया है।
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