कैसे बदली बच्चों की पढ़ाई की दुनिया ? 20 साल में 180 डिग्री घूम गया एजुकेशन का तरीका, किताबों की जगह टेक्नोलॉजी गुरु, गूगल के कब्जे में ब्रेन ?

बीस साल पहले जब बच्चे स्कूल जाते थे, तो बस्ते में किताबें और टिफिन के साथ चॉक की खुशबू होती थी। आज वही बच्चे अपने बच्चों के लिए लैपटॉप, टैबलेट और वाई-फाई कनेक्शन खरीद रहे हैं। कभी “गुरु की कक्षा” ज्ञान का एकमात्र स्रोत थी, अब “गूगल की दुनिया” हर बच्चे के हाथ में खुली किताब बन गई है।
2000 से 2025 तक का सफर भारत की शिक्षा प्रणाली के लिए सिर्फ समय का नहीं, बल्कि सोच और तकनीक का भी गहरा परिवर्तन रहा है। यह कहानी है — कैसे शिक्षा ने किताब से क्लिक तक का सफर तय किया और आने वाले कल की दिशा क्या होगी।

1. 2000 का दशक – जब ब्लैकबोर्ड राजा था
साल 2000 के शुरुआती वर्षों में देश का शिक्षा ढांचा पारंपरिक था। कक्षा में ब्लैकबोर्ड, चॉक और डस्टर — यही शिक्षा की पहचान थी। टीचर का बोलना ही ज्ञान था, और बच्चों का काम बस सुनना और याद करना।
अधिकांश स्कूलों में डिजिटल तकनीक का नाम तक नहीं था। कंप्यूटर लैब केवल बड़े शहरों के कुछ निजी स्कूलों में सीमित थी। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बच्चे अब भी तेल के दीये की रोशनी में पढ़ते थे, और परीक्षा रटकर पास होना ही “सफलता” मानी जाती थी।
2. 2010 का दशक – डिजिटल की दस्तक
इंटरनेट और स्मार्टफोन के आगमन ने शिक्षा के द्वार खोल दिए। 2010 के आसपास जब भारत में डेटा सस्ता हुआ, तब पहली बार “ऑनलाइन लर्निंग” का विचार हकीकत बनने लगा। BYJU’S, Vedantu, Unacademy, Khan Academy जैसे प्लेटफॉर्म ने बच्चों को किताबों से बाहर निकालकर स्क्रीन पर पढ़ना सिखाया।
अब पढ़ाई सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं रही। बच्चे घर बैठे वीडियो लेक्चर, एनीमेशन और क्विज़ से सीखने लगे। books-to-clicks-how-education-changed-in-20-yearsमाता-पिता को लगा कि तकनीक बच्चों की जिज्ञासा बढ़ा रही है —और शिक्षक समझने लगे कि अब उनका किरदार “जानकारी देने वाला” नहीं, बल्कि “मार्गदर्शक” बन गया है।

3. बच्चे अब सिर्फ सुनते नहीं, बनाते हैं
पहले शिक्षा एकतरफा थी — टीचर बोले, बच्चे सुने। अब बच्चे खुद “क्रिएटर” बन रहे हैं। कोडिंग, गेम डेवलपमेंट, रोबोटिक्स, डिजाइन और डिजिटल आर्ट — ये सब अब स्कूल के सिलेबस का हिस्सा बन चुके हैं।
नई पीढ़ी अब सिर्फ ‘किताब पढ़ने’ नहीं, बल्कि ‘किताब बनाने’ की दिशा में बढ़ रही है। बच्चों के लिए सीखना अब ‘रटने’ से ज्यादा ‘समझने’ का विषय बन गया है। और यह बदलाव आने वाले दशकों में भारत को “क्रिएटिव माइंड्स की ताकत” देगा।
4. कोविड-19 : शिक्षा की सबसे बड़ी परीक्षा
2020 में जब दुनिया थम गई, तब स्कूलों ने डिजिटल क्रांति की सबसे बड़ी छलांग लगाई। कोरोना महामारी ने शिक्षा की परिभाषा ही बदल दी — कक्षा अब स्कूल की दीवारों में नहीं, बल्कि मोबाइल स्क्रीन पर सिमट गई।
गाँवों में बच्चे पेड़ों के नीचे बैठकर मोबाइल से क्लास करने लगे। शहरों में बच्चे ज़ूम, गूगल क्लासरूम और MS Teams पर पढ़ने लगे। टीचर ने पहली बार कैमरे के सामने पढ़ाना सीखा, और माता-पिता ने महसूस किया कि शिक्षा अब घर की जिम्मेदारी भी है। कोविड ने यह साबित कर दिया कि तकनीक सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि “शिक्षा की नई भाषा” बन चुकी है।

5. गांव-शहर की दूरी घटने लगी
पहले अच्छी पढ़ाई का मतलब था — “शहर का स्कूल”। अब इंटरनेट ने यह दीवार गिरा दी है। गांव का बच्चा भी अब ऑनलाइन क्लास के ज़रिए वैसा ही ज्ञान पा रहा है जैसा महानगरों के छात्र।
छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के हज़ारों छात्र डिजिटल मिशन स्कूल, SWAYAM और PM eVidya जैसी योजनाओं से जुड़ चुके हैं। शिक्षा अब “स्थान” पर नहीं, “संवाद” पर निर्भर हो गई है।
6. पर हर क्रांति के साथ आती है चुनौती
डिजिटल शिक्षा ने जहां एक ओर नई संभावनाएँ दीं, वहीं कई गंभीर चुनौतियाँ भी खड़ी कीं।
- स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की आंखों और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा।
- सोशल मीडिया और गेमिंग ने ध्यान भटकाया।
- हर घर में इंटरनेट नहीं होने से डिजिटल डिवाइड की खाई और गहरी हुई।
- ग्रामीण इलाकों के कई बच्चे तकनीक तक पहुँच न होने के कारण पीछे रह गए।
ये वे चुनौतियाँ हैं जिन्हें अगर समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो “स्मार्ट क्लास” भी असमानता की नई दीवार बन सकती है।

7. डिजिटल युग में अब क्या करना होगा
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अब हमें तीन स्तरों पर सुधार की ज़रूरत है —
(क) नीति स्तर पर — सरकार को डिजिटल शिक्षा के लिए ढांचा मजबूत करना होगा। हर स्कूल तक इंटरनेट और डिजिटल उपकरण पहुंचाने होंगे।
(ख) शिक्षक स्तर पर — हर शिक्षक को “डिजिटल ट्रेनिंग” देनी होगी ताकि वे तकनीक के साथ शिक्षण की गुणवत्ता बनाए रख सकें।
(ग) परिवार स्तर पर — माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन टाइम और कंटेंट पर नज़र रखनी होगी। बच्चों को तकनीक के साथ संतुलन सिखाना होगा।
8. शिक्षा का भविष्य — हाइब्रिड मॉडल
आने वाले वर्षों में शिक्षा का सबसे बड़ा रूप होगा — “हाइब्रिड एजुकेशन”। यानी न पूरी तरह ऑनलाइन, न पूरी तरह ऑफलाइन। बल्कि एक ऐसा मिश्रण जहाँ तकनीक और मानवीय संवाद दोनों साथ चलें।
टीचर बच्चों से आमने-सामने संवाद करेंगे, और डिजिटल टूल उनकी समझ बढ़ाएंगे। शहरों से लेकर गाँवों तक बच्चे अब एक ही वर्चुअल क्लास में जुड़ सकेंगे। यह वही भविष्य है जहाँ भारत का हर बच्चा समान अवसर पा सकेगा।
9. शिक्षा अब रटने की नहीं, सोचने की होगी
नई शिक्षा नीति (NEP-2020) ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। अब स्कूली शिक्षा में “फाउंडेशनल लर्निंग”, “क्रिटिकल थिंकिंग” और “मल्टीडिसिप्लिनरी स्टडी” पर ज़ोर दिया जा रहा है। बच्चों को अब सिर्फ जवाब याद नहीं करने, बल्कि सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। और यही असली शिक्षा है — जो सोच को स्वतंत्र बनाती है।
10. अगली पीढ़ी की तैयारी
बीस सालों में बच्चों की पढ़ाई ने जो यात्रा तय की है, वह भारत की सामाजिक और तकनीकी उन्नति का प्रतीक है।
अब ज़रूरत है इस यात्रा को सही दिशा देने की — ताकि तकनीक शिक्षा को मानवता से जोड़ने का माध्यम बने, न कि प्रतिस्पर्धा का उपकरण।
हमारे बच्चे अब “सूचना युग” के नहीं, “ज्ञान युग” के नागरिक हैं। उन्हें सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि जीवन की समझ देना ही शिक्षा का नया उद्देश्य होना चाहिए।
“कभी बच्चे किताबों में भविष्य खोजते थे,
अब वे स्क्रीन पर दुनिया गढ़ रहे हैं।
फर्क बस इतना है — पहले वे सीखते थे ‘क्या है’,
अब वे पूछते हैं — ‘क्यों है?’”
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