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गरियाबंद में करप्शन की सरकारी घुन ? गरीबों को थमाया घटिया चना, कलेक्ट्रेट से 500 मीटर की दूरी पर कांड, आखिर कौन कर रहा ग़रीब की थाली ज़हरीली ?

गिऱीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद कलेक्टोरेट से महज़ 500 मीटर दूरी पर स्थित सरकारी राशन दुकान में गुरुवार को उपभोक्ताओं के हाथों में जो चना थमाया गया, वह खाने लायक नहीं था। सील बंद पैकेट खोलते ही बदबू और घुन से भरा चना सामने आया। उपभोक्ताओं ने गुस्से में कहा— “ले तो लिए हैं, पर खाने का काम नहीं आएगा।

राशन लेने पहुंचे गणेश नेताम और योगेश बघेल ने बताया कि उन्हें जो चना दिया गया, उसमें 80-90% दाने घुन लगे थे। पैकेट फाड़ते ही सड़ांध मारती बदबू उठ रही थी। चौंकाने वाली बात यह है कि दुकान में मौजूद सभी पैकेटों की यही हालत थी।
विकल्प न होने के कारण उपभोक्ताओं को मजबूरी में मानकहीन चना स्वीकार करना पड़ा।

सेल्समैन ने बताई अपनी मजबूरी

राशन दुकान के सेल्समैन मोहित यादव ने स्वीकार किया कि जब उन्होंने अगस्त माह में चार्ज लिया था, तब से यह स्टॉक पहले से ही घुन खाया पड़ा था। अफसरों को जानकारी देने के बावजूद स्टॉक वितरण का दबाव था, इसलिए आज मजबूरी में इसे बांटा गया।

दोहरी जांच व्यवस्था पर सवाल

नियम के मुताबिक, चना सप्लाई करने वाला फर्म—जो राजधानी रायपुर का है—छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन के ज़रिये जिले में स्टॉक भेजता है।

पहला परीक्षण: नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा स्टॉक स्वीकार करने से पहले।
दूसरा परीक्षण: राशन दुकान में भंडारण से पहले।

सवाल यह है कि दोनों स्तर पर जांच होने के बावजूद सील बंद पैकेट में घुन लगे चने कैसे पहुंच गए?

अगर खुले पैकेट खराब मिलते तो जिम्मेदारी दुकानदार की होती, लेकिन सील बंद पैकेट में घुन होने पर जिम्मेदारी किसकी है?

मिलीभगत का शक, पुराना खेल दोहराने की आशंका

गरियाबंद में यह पहली घटना नहीं है। दो साल पहले देवभोग में भी इसी तरह घुन लगे चने उपभोक्ताओं को बांटने की कोशिश हुई थी। हंगामे के बाद तब स्टॉक बदला गया था। अब आशंका है कि मानकहीन स्टॉक खपाने का खेल फिर से शुरू हो चुका है।

अफसरों का बयान

अरविंद दुबे, जिला खाद्य अधिकारी: “मामले की जानकारी मीडिया के ज़रिये मिली है, जांच करवाते हैं।”

किरण राय, डीएमओ, नागरिक आपूर्ति निगम: “जून माह में आए स्टॉक की जांच में चना पूरी तरह सही था। वितरण के निर्देश भी दिए गए थे। यह कैसे खराब हुआ, इसकी पड़ताल होगी।”

बड़ा सवाल

क्या यह महज़ लापरवाही है या फिर प्रशासन और सप्लायर के बीच मिलीभगत से मानकहीन स्टॉक खपाने की कोशिश? क्योंकि उपभोक्ताओं को दिया गया ‘स्वादिष्ट चना’ वास्तव में जहरीला मज़ाक साबित हुआ है।

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