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गरियाबंद के भास्कर राव पांढरे को पीएचडी की उपाधि: सामवेद के इकलौते विद्वान को तिरुपति में भी मिला सम्मान

Bhaskar Rao Pandre of Gariaband gets PhD degree: गरियाबंद जिले के युवा पत्रकार और शोधकर्ता भास्कर राव पांढरे ने अपने परिश्रम और लगन से ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने उन्हें संस्कृत विषय में पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। इस संबंध में विश्वविद्यालय ने आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है।

वर्तमान में कोमाखान निवासी डॉ पांढरे ने प्रोफेसर डॉ रामकिशोर मिश्र के निर्देशन में “सामवेदीय देवोपासनायाः वर्तमान सन्दर्भ अनुशीलनम्” विषय पर शोध कार्य पूर्ण किया। उनकी मौखिक परीक्षा रायपुर विश्वविद्यालय के पाणिनी सभागार में लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के वेद विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ देवेंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस अवसर पर प्रोफेसर डॉ रामकिशोर मिश्र, हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बारा मैम, डॉ गिरजा शंकर गौतम, डॉ हेमंत शर्मा, डॉ कान्हे, डॉ बी पी शर्मा, डॉ ज्ञानेश उपाध्याय, डॉ नीलेश तिवारी, जितेंद्र खरे और सुमित सोनी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

तिरुपति से तिरुपति विश्वविद्यालय में भी हुए हैं सम्मानित

यह उपलब्धि इसलिए भी विशेष है क्योंकि डॉ पांढरे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सामवेद के इकलौते विद्वान हैं। उन्हें पूर्व में तिरुपति वैदिक विश्वविद्यालय द्वारा सामवेद पर किए गए शोध कार्य हेतु विशेष सम्मान भी प्राप्त हुआ था। साथ ही वे ज्योतिष और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अनेक बार सम्मानित हो चुके हैं।

डॉक्टरेट की उपाधि मिलने के बाद परिवार, मित्रों और बौद्धिक वर्ग में हर्ष की लहर है। बधाई देने वालों में पत्रकार संघ से संतोष जैन, यशवंत यादव, नरेन्द्र तिवारी, उज्जवल जैन , पुरुषोत्तम पात्र, अशोक दिक्षित, मेषनंदन पांडेय, परमेश्वर राजपुत, यामिनी चंद्राकर , प्रकाश यादव, कुलेश्वर सिन्हा, किशन सिन्हा, भुपेन्द्र सिन्हा, तेज राम ध्रुव, गोल्डन यादव, शामिल रहे।

वहीं गणमान्य नागरिकों और जनप्रतिनिधियों में खल्लारी विधायक द्वारिकाधीश यादव, नगर पंचायत अध्यक्ष लुकेश्वरी थानसिंह निषाद, उपाध्यक्ष समीमखान, पार्षद हरीश यादव, सलिम मेमन, रिंकु सचदेव, थानसिंह निषाद, नथमल शर्मा, अशोक मक्खु दिक्षित ने भी शुभकामनाएं दीं।

कहा जा सकता है कि डॉ भास्कर राव पांढरे की यह उपलब्धि केवल महासमुंद ही नहीं बल्कि समूचे छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के बौद्धिक और सांस्कृतिक गौरव को नई ऊंचाई प्रदान करती है। सामवेद जैसे दुर्लभ और गंभीर विषय पर शोध कर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का नया द्वार खोला है।

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