गरियाबंद बना संस्कृत जागरण का अग्रदूत, अब शिक्षक कहलाएंगे ‘गुरुदेव’ और ‘गुरुमाता'”

गिरीश जगत की रिपोर्ट, गरियाबंद।
संस्कृत के बिना संस्कृति अधूरी है – इसी विचार को साकार करने के लिए गरियाबंद जिले में एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से प्रेरणादायक पहल की गई है। जिला पंचायत अध्यक्ष गौरीशंकर कश्यप ने मंगलवार को जिला पंचायत सभाकक्ष में आयोजित एकदिवसीय संस्कृत कार्यशाला के दौरान घोषणा की कि अब जिले के संस्कृत शिक्षकों को ‘गुरुदेव’ व ‘गुरुमाता’ के सम्मानजनक संबोधन से पहचाना जाएगा।

इस अनूठी पहल के पीछे उद्देश्य है संस्कृत को केवल भाषा नहीं, बल्कि जीवनशैली और सांस्कृतिक चेतना का माध्यम बनाना। कार्यशाला का आयोजन संस्कृत भाषा के संरक्षण, संवर्धन और जनमानस में इसके पुनर्प्रवेश को लेकर किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में संस्कृत शिक्षक, भाषा विशेषज्ञ और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग शामिल हुए।

जिला पंचायत अध्यक्ष कश्यप ने कहा,
“छत्तीसगढ़ में गरियाबंद पहला जिला है जिसने संस्कृत विषय पर इस तरह की कार्यशाला आयोजित कर एक नई परंपरा की नींव रखी है। संस्कृत शिक्षक केवल भाषा के शिक्षक नहीं, बल्कि संस्कृति के वाहक हैं।”
संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के प्रांत संगठन मंत्री हेमंत साहू ने भी कार्यशाला को संबोधित करते हुए बताया कि दुनिया भर में संस्कृत को बचाने और बढ़ावा देने का कार्य संस्कृत भारती कर रही है। उन्होंने इसे भारतीय आत्मा की आवाज़ बताया।

शिक्षकों की मांग: संस्कृत हो अनिवार्य विषय
कार्यशाला में उपस्थित शिक्षकों और भाषा विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि संस्कृत को वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। साथ ही, जहां यह विषय पढ़ाया जाता है वहां प्रशिक्षित शिक्षक की नियुक्ति अनिवार्य होनी चाहिए। संस्कृत के शब्दों को ‘अमृततुल्य’ बताते हुए उन्होंने नई पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए ठोस रणनीति बनाए जाने की बात रखी।
गरियाबंद की यह पहल केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों में संस्कार और संस्कृति के बीज बोने का कार्य है। संस्कृत शिक्षक अब सिर्फ शिक्षक नहीं, संस्कृति के संरक्षक बनकर सम्मानित होंगे – गुरुदेव और गुरुमाता के रूप में।