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बाकड़ी पैरी नाला बना मौत का रास्ता: ट्यूब से नदी पार कर रहे शिक्षक, बरसों से पुल की मांग अनसुनी, कब जागेगा लाचार गरियाबंद प्रशासन ?

गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद। छत्तीसगढ़

गरियाबंद जिले में शिक्षा की हकीकत का कड़वा सच एक बार फिर सामने आया है। बाकड़ी पैरी नाला पर पुल की अनुपस्थिति ने यहां के बच्चों और शिक्षकों दोनों को जिंदगी दांव पर लगाने पर मजबूर कर दिया है। यह सिर्फ बच्चों की पढ़ाई की बाधा नहीं, बल्कि प्रशासन और शिक्षा विभाग की नाकामी का जीता-जागता उदाहरण है।

पढ़ाई का जुनून, मौत से खेलते कदम

धवलपुर मुख्यालय में स्थित बड़े स्कूल तक पहुंचने के लिए मिडिल और हाई स्कूल के बच्चों को रोजाना पैरी नाला पार करना पड़ता है। लेकिन यह कहानी सिर्फ बच्चों की नहीं है—मुख्यालय में रहने वाले शिक्षक भी बोडापाला और जारहीडीह जैसे गांवों में पढ़ाने जाते हैं, और इसके लिए उन्हें भी इसी खतरनाक रास्ते से गुजरना पड़ता है।

गुरुवार को, जब नदी उफान पर थी, तब इन शिक्षकों को मजबूरी में ट्यूब का सहारा लेकर नदी पार करनी पड़ी। पानी की तेज धार, गहराई और असंतुलन का खतरा हर पल बना रहा, लेकिन शिक्षा का दायित्व निभाने के लिए उन्होंने अपनी जान दांव पर लगा दी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिससे अब पूरे जिले में प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठ रहे हैं।

बरसात भर जारी रहता है खतरा

यह कोई एक दिन या एक बार की घटना नहीं है। बरसात के पूरे मौसम में यह जोखिम भरा सिलसिला चलता रहता है। कई बार पानी का बहाव इतना तेज होता है कि ट्यूब भी पलट सकती है। ऐसे में न केवल बच्चों बल्कि शिक्षकों की जान को भी बड़ा खतरा रहता है।

कुछ दिन पहले ही, स्कूली छात्रों को नदी पार करते हुए एक वीडियो सामने आया था, जिसमें साफ दिखा कि कैसे 10–12 साल के मासूम बच्चे बाढ़ जैसी स्थिति में अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने जा रहे हैं।

प्रशासन और विभाग की चुप्पी

यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक बच्चों और शिक्षकों की जान को खतरे में डालकर शिक्षा का काम चलता रहेगा? सालों से यहां पुल की मांग की जा रही है, लेकिन सरकार और संबंधित विभाग सिर्फ आश्वासन देकर अपनी जिम्मेदारी से बचते रहे हैं।

बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना शासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है, लेकिन गरियाबंद के इस हिस्से में हालात बता रहे हैं कि ग्रामीण इलाकों के बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा शायद सरकारी प्राथमिकताओं में शामिल ही नहीं है।

अब और इंतजार नहीं

यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा और तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था या स्थायी पुल का निर्माण नहीं कराया गया, तो किसी दिन यह लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। यह केवल एक शिक्षा से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन और सुरक्षा से सीधा जुड़ा प्रश्न है।

स्कूल तक पहुंचने का रास्ता मौत के मुंह से होकर नहीं गुजरना चाहिए। गरियाबंद के बाकड़ी पैरी नाला पर जल्द से जल्द सुरक्षित पुल का निर्माण होना ही चाहिए—यह अब मांग नहीं, बल्कि हक और मजबूरी है।

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