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छुरा नगर पंचायत में कुर्सी पर कौन काबिज ? ‘साले’ कहकर फोन पर धमकाया, शाम तक नोटिस से रुका निर्माण, पढ़िए बिना पद के रसूख और देवरशाही की कहानी

गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद । छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के छुरा नगर पंचायत से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पंचायती राजनीति में परदे के पीछे के चेहरे को बेनकाब कर दिया है। पंचायतों में सरपंच पतियों की दखलअंदाजी की कहानियाँ आम हैं, लेकिन अब महिला नगर पंचायत अध्यक्ष के देवर के “सत्ता-प्रेम” की पोल खुलती नज़र आ रही है।

मामला नगर पंचायत छुरा के वार्ड क्रमांक 1 का है, जहां एक आम नागरिक नीरज यदु द्वारा किए जा रहे भवन निर्माण को लेकर नगर पंचायत अध्यक्ष लुकेश्वरी निषाद के देवर मानसिंह निषाद की ओर से कथित तौर पर फोन पर धमकी दी गई। यही नहीं, कॉल के चंद घंटों के भीतर ही निर्माण कार्य पर रोक लगाने का नोटिस भी थमा दिया गया। इस पूरी बातचीत का ऑडियो वायरल हो रहा है, जिसमें मानसिंह साले जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करता सुनाई देता है।


ऑडियो, धमकी और तत्काल कार्रवाई – महज संयोग?

4 अगस्त को सुबह 11:15 बजे के आस-पास की बातचीत का दावा किया गया है। कॉल में मानसिंह पूछताछ की मुद्रा में नीरज से निर्माण की अनुमति के बारे में पूछता है। जब नीरज विरोध करता है, तो मानसिंह कार्यालय में बैठे कर्मियों से काम रुकवाने की बात करता है। दोपहर होते-होते वही हुआ – नगर पंचायत की ओर से नोटिस जारी कर निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई।

इसके बाद नीरज की मां सरिता ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी सीएमओ को लिखित रूप में देते हुए 5 अगस्त को जांच की मांग की है।


देवर बोले – ‘मैं आम नागरिक हूं

देवर मानसिंह निषाद ने अपनी सफाई में कहा है कि उन्होंने महज आम आदमी के तौर पर सवाल किया। लेकिन जब एक आम नागरिक फोन पर धमकी देने की भाषा बोलता है और फिर उसी दिन नगर पंचायत से काम रोकने का नोटिस आता है, तो सवाल उठना लाज़मी है – क्या देवर वाकई बाहर का व्यक्ति है, या वह छुरा नगर पंचायत का ‘अनौपचारिक सुपरवाइज़र’ बन बैठा है?

नगर पंचायत के सीएमओ यमन देवांगन ने कहा है कि अध्यक्ष का कोई प्रतिनिधि अधिकृत नहीं है, और शिकायत की जांच की जा रही है। उनके मुताबिक परिषद की बैठक के बाद वे स्पष्ट जानकारी दे पाएंगे।


बोगस प्रतिनिधि बनाम लोकतंत्र – छुरा का राजनीतिक असंतुलन

इस घटना ने छुरा में पहले से ही चल रहे सियासी टकराव को और उग्र बना दिया है। गौरतलब है कि नगर पंचायत अध्यक्ष के चयन के दौरान भाजपा के दो गुटों में भारी संघर्ष हुआ था। अब जब ऑडियो वायरल हो चुका है, विरोधी खेमा इसे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा चुका है। इससे पहले अध्यक्ष और उनके भाई द्वारा कुर्सी पर बैठकर जन्मदिन का केक काटने की तस्वीरें सामने आई थीं, जिसे ‘निजी मामला’ बताकर दबा दिया गया था। लेकिन इस बार मामला यहीं रुकता नहीं दिख रहा।


निर्णयों में तीन दिमाग, दिशा एक नहीं

छुरा नगर पंचायत से जुड़े एक और अंदरूनी पहलू की चर्चा हो रही है — कर्मचारियों के बीच निर्णय प्रक्रिया को लेकर असमंजस। कहा जा रहा है कि काम का आदेश एक होता है, लेकिन राय तीन— अध्यक्ष, पति और अब देवर। किसी भी निर्णय से पहले तीनों के संकेतों को देखना पड़ता है, जिससे निचले स्तर के कर्मचारी मानसिक उलझन में फंसे रहते हैं।

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा — “दस्तखत मेडम का होता है, लेकिन पुताई का रंग कौन तय करेगा – इस पर ही मतभेद हो जाता है।”


अब सवाल जनता के हैं

  • क्या छुरा नगर पंचायत एक व्यक्ति विशेष के निजी अखाड़ा बन चुका है?
  • अगर अध्यक्ष का देवर कोई अधिकार नहीं रखता, तो उसकी बात पर कार्रवाई कैसे हुई?
  • क्या नगर पंचायत कार्यालय में राजनीतिक रिश्तों की पैठ नियमों पर भारी पड़ रही है?

ये सिर्फ एक फोन कॉल या एक नोटिस की बात नहीं है। ये सवाल स्थानीय लोकतंत्र की गरिमा, प्रक्रिया की पारदर्शिता और पद की मर्यादा से जुड़ा है।

अब देखना होगा कि सीएमओ की जांच कितनी निष्पक्ष होती है, और क्या वाकई इस “अनाधिकारिक हस्तक्षेप” पर प्रशासन कोई ठोस एक्शन लेता है या यह मामला भी “अंदरूनी मामला” बताकर रफा-दफा कर दिया जाएगा।


(यह रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों, शिकायत पत्र और वायरल ऑडियो के आधार पर तैयार की गई है।)

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