
गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में लोग नर्क की जिंदगी जी रहे हैं. किडनी प्रभावित सुपेबेड़ा गांव की अब तक न तस्वीर बदली और न ग्रामीणों की तकदीर बदली. गांव में आज भी किडनी की बीमारी से मौतों का सिलसिला जारी है. ग्रामीण आज भी वही दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. सरकार के सभी वादे और दावे जमीन पर धूल चाट रही हैं. तेल नदी में 12 करोड की वाटर स्कीम भी पानी में मिल गई औऱ एक मौत फिर हो गई.
सुपेबेड़ा में किड़नी की बीमारी से पूरंधर ऑडिल की मौत हुई है. इससे इलाके में मातम पसर गया है. इस गांव में राज्यपाल अनुसुईया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल औऱ स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव भी आ चुके हैं, लेकिन इस गांव की स्थिति जस के तस बनी हुई है. लोगों को मौत ही नसीब हो रही है, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है.
दरअसल, सुपेबेडा गरियाबंद जिले का ऐसा गांव है, जिसकी पहचान किडनी प्रभावित के रूप में जग जाहिर है. पिछले 6 साल से यहां के लोग किडनी की बीमारी से मौत के गाल में समा रहे हैं. बीती रात हुई पुरेन्द्र आडिल की मौत के साथ अब गांव में किडनी की बीमारी से मरने वालों की मौत का आंकड़ा बढ़कर 78 हो गया है. गांव के हालात आज भी जस के तस है.
गांव में फैली बीमारी की वजह दूषित पानी बताया जा रहा है. 23 दिसम्बर 2018 को गांव में शुद्ध पेयजल के लिए सरकार द्वारा तेल नदी से एक साल के भीतर पानी लाने की घोषणा की गई, लेकिन 3 साल बीतने के बाद टेंडर तक जारी नहीं हो पाया. गांव में लगे रिमूवल प्लांट भी देखभाल के अभाव में धूल खा रहे हैं. नतीजा आज भी लोग हैंडपंप या फिर झिरिया का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं.
तेल नदी से पानी देने 12 करोड की वाटर स्कीम का ऐलान कांगेस सरकार में आते ही 2018 में कर दिया था. इस स्कीम से सुपेबड़ा के अलावा पास के अन्य 9 गांव को भी साफ पानी मिलता. अब तक काम केवल फाइलों में है. टेंडर की प्रकिया तक पूरी नहीं हुई है.
6 साल में सरकारें बदली, लेकिन नहीं बदली तो सुपेबेडा की तस्वीर. नेताओं के दावे सुनकर ग्रामीण परेशान हो चुके हैं. जमीनी स्तर पर व्यवस्थाएं मुकम्मल करने की मांग कर रहे हैं. अब देखने वाली बात होगी कि सुपेबेडा के लोगों की ये मांगे कबतक जमीनी धरातल पर उतरेगी.