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गरियाबंद में माइनिंग विभाग के दावे की खुली पोल: रातभर रेत से भरी 50 से ज्यादा हाइवा बेरियर से पार हुई, माफिया बेखौफ, सवालों के घेरे में प्रशासन

गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट

Chhattisgarh Gariaband Mining Department Illegal sand mining: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के राजिम क्षेत्र में पितईबंद घाट पर अवैध रेत खनन की कवरेज करने गए पत्रकारों पर हुए जानलेवा हमले के बाद जिला प्रशासन ने सभी घाटों पर अवैध परिवहन पूरी तरह बंद कराने का दावा किया था। राजिम विधायक रोहित साहू भी इस दावे से आश्वस्त नजर आए, लेकिन जमीनी हकीकत प्रशासनिक दावों को नकार रही है।

चेन माउंटेन और हाइवा की रातभर हलचल, माफिया के हौसले बुलंद

पैरी नदी के कुरूस-केरा घाट में हर रात अवैध खनन का खेल खुलेआम जारी है। बीती रात मौके की सच्चाई जानने के लिए रात 10:30 बजे से सुबह 4 बजे तक राजिम के मुख्य चौराहे पर निगरानी रखी गई। इस दौरान 50 से ज्यादा रेत से भरी हाइवा वाहन बेरोकटोक बेरियर पार करते दिखे, जिस बेरियर पर माइनिंग विभाग अपनी 24 घंटे निगरानी टीम तैनात होने का दावा करता है।

घाट पर तीन से ज्यादा चेन माउंटेन हर रात 8 बजे से काम में लग जाते हैं और सुबह होने से पहले उन्हें पास की नर्सरियों की झाड़ियों में छिपा दिया जाता है।

कैमरे बोलेंगे सच?

यदि प्रशासन सच्चे मन से अवैध खनन रोकने को तैयार है, तो राजिम के मुख्य मार्गों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज जांच की जा सकती है। इससे न सिर्फ रातभर हुए रेत परिवहन का पर्दाफाश होगा, बल्कि माइनिंग विभाग के दावों की सच्चाई भी सामने आएगी।

बेरियर पर कोई निगरानी नहीं, सड़कें हुईं गीली

रातभर रेत लदी गाड़ियों के आवागमन से राजिम की सड़कें गीली हो गईं, जो अवैध परिवहन का सीधा प्रमाण हैं। बेरियर पर न तो कोई माइनिंग कर्मी था, न ही रोक-टोक। यह दर्शाता है कि माइनिंग विभाग की टीम या तो मौके पर नहीं थी या फिर जानबूझकर आंखें मूंदे रही।

अधिकारियों के क्या कहा ?

मामले में पूछे जाने पर जिला माइनिंग अधिकारी रोहित साहू ने कहा, “राजिम चौक के आगे फॉरेस्ट बेरियर में हमारी टीम 24 घंटे तैनात रहती है। अवैध माइनिंग जिले में पूरी तरह से बंद है। कहीं हो रहा होगा तो कार्रवाई करेंगे।”

अब सवाल यह है

क्या रात 11 बजे के बाद बेरियर की निगरानी बंद हो जाती है?

क्या माइनिंग विभाग को स्थानीय माफिया की गतिविधियों की जानकारी नहीं है?

क्या पत्रकारों पर हमले के बावजूद माफिया इतने बेखौफ हैं क्योंकि उन्हें संरक्षण प्राप्त है?

आखिर कब तक ‘कागजों में कार्रवाई’ और ‘जमीन पर धंधा’ चलता रहेगा?

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