
गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट
Chhattisgarh Gariyaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले की पंचायत व्यवस्था इन दिनों अव्यवस्था की मिसाल बन गई है। जिला पंचायत द्वारा पंचायत सचिवों के तबादलों और अतिरिक्त प्रभार के आदेशों को लेकर ग्रामीणों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक में आक्रोश है। सिर्फ एक महीने में 30 से अधिक सचिवों का तबादला अलग-अलग टुकड़ों में किया गया, जिससे पूरे जिले में “तबादला उद्योग” की चर्चाएं तेज हो गई हैं।
Chhattisgarh Gariyaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: पंचायतों के आंतरिक कामकाज और सरपंच-सचिव के संबंधों में सामंजस्य के नाम पर जारी इन आदेशों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। कई मामलों में गृह पंचायत में फिर से पोस्टिंग, बिना चार्ज लिए नया आदेश, और आपसी सहमति को तोड़ना, जैसी कार्यशैली सामने आई है।

केस स्टडी – पंचायत तबादलों की 3 बड़ी परतें
केस 1: दागी सचिव की वापसी, ग्रामीणों का साष्टांग प्रदर्शन
स्थान: मुंगिया पंचायत, जनपद–देवभोग
विवादित आदेश: सचिव देवानंद बीसी का तबादला गृह पंचायत कदली मूड़ा में
देवानंद बीसी को जब तीन साल पहले भ्रष्टाचार के आरोप में गृह पंचायत से हटाया गया था, तब गांववालों ने राहत की सांस ली थी। मगर जुलाई में आए तबादला आदेश ने गांव में एक बार फिर डर और गुस्सा भर दिया। जब देवानंद को वापस उसी पंचायत में नियुक्त किया गया, तो 12 वार्ड पंच और ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया।
Chhattisgarh Gariaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: शनिवार को जब जिला सीईओ जी.आर. मरकाम दौरे पर पहुंचे, तो ग्रामीणों ने उनके पैर पकड़कर सचिव को हटाने की मांग की। लोगों का सवाल था—”क्या तबादले अफसरशाही की मर्जी से हो रहे हैं या जनता की मांग पर?”

केस 2: एक पद, दो आदेश, बिना चार्ज लिए ही दोबारा तबादला
स्थान: उरमाल और डूमाघाट, जनपद–मैनपुर
विवादित पात्र: सचिव सत्यरंजन हंसराज, चम्पेश्वर दास, संतोष गुप्ता, रूपेंद्र यादव
3 जून को सत्यरंजन हंसराज को डूमाघाट भेजा गया, लेकिन वह चार्ज भी नहीं ले सके थे कि 1 जुलाई को चम्पेश्वर दास को उसी पंचायत में भेजने का आदेश निकल गया।
संतोष गुप्ता, जो पहले डूमाघाट में अतिरिक्त प्रभार में थे, उन्हें मदागमुड़ा भेजा गया। और फिर रूपेंद्र यादव को वहीं पोस्ट कर दिया गया।
Chhattisgarh Gariaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: इतने बदलावों के बीच, प्रशासनिक स्थिरता और पारदर्शिता दोनों गुम हो गईं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये बदलाव किसी “फिक्सिंग स्कीम” का हिस्सा हैं?

केस 3: ‘आपसी सहमति’ से अदला-बदली, फिर आदेश बदलकर गेम चेंज
स्थान: गोपालपुर और तुहामेटा, जनपद–मैनपुर
पात्र: त्रिवेंद्र नागेश और त्रिलोक नागेश
क्या है अदला-बदली की कहानी ?
30 जून को आदेश निकला कि दोनों सचिव आपसी सहमति से अदला बदली कर रहे हैं, लेकिन 3 जुलाई को नया आदेश आया, जिसमें त्रिवेंद्र को तुहामेटा के साथ गोपालपुर का भी अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया। त्रिलोक को जनपद कार्यालय से अटैच कर दिया गया।
त्रिलोक खुद को ठगा महसूस कर रहा है, लेकिन बड़े अफसरों के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। चर्चा ये भी है कि त्रिवेंद्र, जिला पंचायत के एक बड़े अधिकारी का रिश्तेदार है। यही वजह है कि उसे दो-दो पंचायतों की जिम्मेदारी मिली।

सचिव संघ में घमासान: व्हाट्सएप ग्रुप में चल रहा तबादला ‘एक्सपोज़’
जिला पंचायत द्वारा जारी 20 से ज्यादा तबादला आदेशों को लेकर सचिव संघ के व्हाट्सएप ग्रुप में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। कई सचिवों ने कहा है कि डीलिंग करने वाले पुराने सचिवों को जानबूझकर राहत दी गई, जबकि सुराज अभियान में शिकायतों के बावजूद कुछ सचिवों की पेशी जिला पंचायत दरबार में कराकर उन्हें क्लीन चिट दिलाई गई।
Chhattisgarh Gariaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: इन आरोपों से स्पष्ट होता है कि सचिवों का तबादला अब एक पारदर्शी प्रक्रिया न होकर एक ‘सुविधा शुल्क आधारित सिस्टम’ बन गया है।
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम बोले – “जनपद सीईओ को नजरअंदाज कर रहे अधिकारी” पूर्व उपाध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने खुलकर सवाल उठाए हैं—
“सचिवों की तबादले की ज़िम्मेदारी जनपद सीईओ के प्रस्ताव पर आधारित होती है। लेकिन इस बार ज़िला स्तर पर जो आदेश निकले हैं, उसमें जनपद सीईओ की सहमति तक नहीं ली गई। यह पूरी कार्यप्रणाली एक साजिश जैसी प्रतीत होती है।”
संजय नेताम ने मांग की है कि सभी तबादला आदेशों की कलेक्टर स्तर पर समीक्षा होनी चाहिए।
सीईओ जी.आर. मरकाम का बचाव – “सरपंच-सचिव में सामंजस्य ज़रूरी”
जब इन तमाम आरोपों पर जिला पंचायत के सीईओ जी.आर. मरकाम से बात की गई, तो उन्होंने कहा:
Chhattisgarh Gariaband Secretary Transfer Scam Investigation Report: “लोकतंत्र में आरोप लगाने की आज़ादी सबको है। जिन सचिवों की सरपंचों से पटरी नहीं बैठ रही थी, या जो सालों से एक ही पंचायत में थे, उन्हें हटाया गया है। यह निर्णय पीएम आवास जैसी योजनाओं की प्रगति के लिए आवश्यक था।”
लेकिन सीईओ के इस बयान से सवाल खत्म नहीं हुए, बल्कि और गहरे हो गए—क्या सचिवों को सरपंचों की मांग पर ट्रांसफर किया जाएगा? क्या अफसरों की भूमिका सिर्फ ऑर्डर साइन करने तक सीमित है?

तबादला बना तंत्र, जवाबदेही हुई फाइलों में गुम
गरियाबंद में पंचायत सचिवों के तबादलों को लेकर जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे न सिर्फ प्रशासनिक पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि कैसे ज़मीनी स्तर पर अफसरशाही राजनीतिक और व्यक्तिगत समीकरणों के आगे झुक रही है।
अब समय आ गया है कि कलेक्टर स्तर पर स्वतंत्र जांच कमेटी बनाई जाए, जो इन तबादलों की प्रक्रिया, मंशा और लाभार्थियों की पहचान करें।
गरियाबंद में पंचायत सचिवों के तबादलों पर विवाद क्यों हो रहा है?
जवाब- तबादले मनमाने ढंग से, टुकड़ों में किए गए हैं। कई मामलों में बिना कारण गृह पंचायत में फिर से पोस्टिंग हुई है।
क्या सभी तबादले जनपद सीईओ की सिफारिश पर हुए?
जवाब- नहीं, जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम का दावा है कि जनपद स्तर को दरकिनार किया गया।
सचिवों की डीलिंग या रिश्वत की भी बात हो रही है?
जवाब- सचिव संघ के व्हाट्सएप ग्रुप में यह आरोप खुले तौर पर लगाए गए हैं कि ‘सेटिंग’ वाले सचिवों को राहत मिली है।
क्या जिला प्रशासन ने कोई जांच या समीक्षा की है?
जवाब- अभी तक आधिकारिक रूप से कोई स्वतंत्र जांच कमेटी गठित नहीं की गई है, केवल मांगें उठ रही हैं।

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