जिन्होंने कभी शराब-सिगरेट को हाथ नहीं लगाया, उन्हें ड्रग एडिक्ट बताया: सरकारी शिक्षक, नेता का बेटा लिस्ट में शामिल, इस इंस्टीट्यूट ने फर्जीवाड़ा कर लाखों ठगे

MP Guna Man De-addiction Centre fraud: मध्यप्रदेश के गुना में एक नशा मुक्ति केंद्र ने सरकारी अनुदान के लिए ऐसे लोगों को नशे का आदी घोषित कर दिया, जिन्होंने कभी शराब या सिगरेट देखी तक नहीं। इनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए और पोर्टल पर फर्जी प्रविष्टियां कर दी गईं। इन फर्जी मरीजों की काउंसलिंग और इलाज के नाम पर सरकार से लाखों रुपए ऐंठ लिए गए। गुना के बजरंगगढ़ बाईपास स्थित नशा मुक्ति केंद्र ने यह फर्जीवाड़ा किया।
इसके अध्यक्ष जिला अस्पताल के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. आरएस भाटी के पिता बीपी सिंह हैं। सचिव डॉ. भाटी की पत्नी संगीता सिंह हैं। संस्था का काम शहर में नशे के आदी लोगों की पहचान कर उनकी काउंसलिंग करना है। यह काम सामाजिक न्याय विभाग की योजना के तहत किया जाता है। घोटाले की शिकायत मिलने पर सामाजिक न्याय विभाग ने जांच शुरू कर दी है।
ओडीआईसी में सबसे ज्यादा अनियमितताएं
कम्यूनिटी पीयर लेड इंटरवेंशन (सीपीएलआई) में स्कूल, कॉलेज, स्लम एरिया में जाकर बच्चों को जागरूक करने का काम किया जाता है। कैंप लगाकर नशे के दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाती है। बच्चों से 20 और बच्चों को इसके बारे में जागरूक करने को कहा जाता है। संस्था बच्चों को खुद से भी जोड़ती है। हर तीन महीने में प्रति वॉलंटियर 9 हजार रुपए देने का प्रावधान है। इसके लिए संस्था को हर 6 महीने में 12 से 15 लाख रुपए की राशि मिलती है।
आउटरीच ड्रॉप इन सेंटर (ओडीआईसी) में जिले में नशा करने वालों की पहचान करने का काम किया जाता है। इसके लिए संस्था के कर्मचारी और वॉलंटियर जिले में अलग-अलग जगहों पर जाकर नशा करने वालों का पता लगाते हैं। उनकी काउंसलिंग की जाती है। जरूरत पड़ने पर इलाज भी कराया जाता है। संस्था को उनकी जानकारी सामाजिक न्याय विभाग के पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) पोर्टल पर दर्ज करनी होती है। इसमें उनका नाम, उम्र, आधार नंबर, मोबाइल नंबर, पता और अन्य विवरण दर्ज करना होता है।
नशे के आदी लोगों की पहचान कर उनकी काउंसलिंग और जरूरत पड़ने पर इलाज कराने के लिए संस्था को हर छह माह में 18 से 20 लाख रुपए मिलते हैं। हर माह 400 लोगों का लक्ष्य दिया जाता है। संस्था ने इस काम में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा किया है।
सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के नाम भी दर्ज
लक्ष्य पूरा करने के लिए संस्था ने आम नागरिक से लेकर सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों तक को नशे का आदी घोषित कर दिया है। इनके नाम पोर्टल पर एंट्री के लिए वोटर लिस्ट से उठाए गए हैं।
इनमें से कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने कभी नशा नहीं किया और न ही कभी काउंसलिंग के लिए गए। वोटर लिस्ट में पोर्टल पर उनकी एंट्री की तारीख भी बकायदा लिखी है।
छोटे लाल जैन का नाम वोटर लिस्ट में 746वें नंबर पर है। उन्हें नशे का आदी बताकर पीएफएमएस पोर्टल पर नाम दर्ज कर दिया गया। भास्कर ने पूछा तो जैन बोले- मैं किसी तरह का नशा नहीं करता और न ही कभी काउंसलिंग कराई।
पार्षद के बेटे का नाम पोर्टल पर डाला
संगठन ने पार्षद के बेटे को भी नशेड़ी दर्शाया है। जब उससे संपर्क किया गया तो उसने बताया कि वह और उसका परिवार नशा नहीं करता। उसके चाचा, ताऊ और अन्य रिश्तेदारों के नाम भी फर्जी तरीके से इस सूची में दर्ज हैं। वे भी कभी नशा नहीं करते।
राठौर मोहल्ला निवासी एक सरकारी शिक्षक का नाम भी पोर्टल पर नशेड़ी के रूप में डाल दिया गया, जबकि उसका पूरा परिवार नशे से दूर है।
पहले शराब, फिर स्मैक का आदी बताया
संगठन में नशेड़ियों की पहचान करने के बाद उन्हें नशा छोड़ने की काउंसलिंग की जाती है। इसके लिए एक फॉर्म भरवाया जाता है। यह काम संगठन के आउटरीच कार्यकर्ता करते हैं। कुछ ऐसे फॉर्म हैं, जिसमें आउटरीच कार्यकर्ता ने पहले किसी को शराब का आदी बताया, फिर फॉर्म के अगले पेज पर उसे स्मैक का आदी बताया।
आउटरीच वर्कर विनायक राठौर ने 20 जुलाई 2024 को नरेश पाल नाम के व्यक्ति का फॉर्म भरा। इसमें पहले पन्ने पर उसे सिगरेट और शराब का आदी बताया गया। डॉक्टर से सलाह लेने की बात कही गई। इसके बाद 25 जुलाई 2024 को उसका काउंसलिंग फॉर्म भरा गया। इसमें लिखा था, ‘हाथ-पैर में दर्द रहता है। सिर में दर्द रहता है। स्मैक के बिना कंट्रोल नहीं होता। तोड़फोड़ करने लगता हूं।’ यानी पहले उसे शराब का आदी बताया गया, फिर काउंसलिंग फॉर्म में उसे स्मैक का आदी बताया गया। कॉल करने पर रजिस्टर्ड नंबर गलत निकला।
उमरी निवासी जितेंद्र साहू की एंट्री विनायक राठौर के नाम से की गई। पहले फॉर्म में भी जितेंद्र को सिगरेट और शराब का आदी बताया गया। इसके बाद काउंसलिंग फॉर्म में भी उसे स्मैक का आदी बताया गया। उसके फॉर्म में लिखा था-हाथ-पैर में दर्द रहता है। नशे के बिना नींद नहीं आती। स्मैक छोड़ना चाहता हूं। जब उनके फॉर्म पर लिखे मोबाइल नंबर पर कॉल किया गया तो वह भी गलत निकला।
Read More- Landmines, Tanks, Ruins: The Afghanista Taliban Left Behind in 2001 29 IAS-IPS