
Chhattisgarh Naxal Attack Bastar IED Detection Challenges Explained; अगर नक्सलियों ने जमीन के दो फीट से ज्यादा नीचे बम या आईईडी लगाया है तो जवानों के पास ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका पता लगा सके। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले में भी यही हुआ। इसमें 1 ड्राइवर और 8 जवान शहीद हो गए। इसमें आईईडी करीब पांच फीट नीचे लगाया गया था।
दरअसल, जवान जब भी मूवमेंट के लिए निकलते हैं तो सबसे पहले रोड ओपनिंग पार्टी और बीडीएस (बम निरोधक दस्ता) जाते हैं। वे देखते हैं कि आसपास कोई खतरा तो नहीं है। बीडीएस खोज करता है कि जमीन के नीचे बम तो नहीं है। डॉग स्क्वॉड को भी दिक्कतें आती हैं बीडीएस टीम के पास इस जांच के लिए उपकरण हैं।
बीडीएस फिर उन्हीं इलाकों में सर्चिंग के लिए निकली है जहां विस्फोट हुआ था। टीम के एक्सपर्ट ने बताया कि उनके पास जो उपकरण हैं, वे जमीन के 2 फीट नीचे तक ही फिट किए गए बमों की जानकारी देते हैं। अगर बम इससे ज्यादा गहराई पर है तो मशीन को पता नहीं चलेगा। बीडीएस टीम के साथ डॉग स्क्वॉड भी है, लेकिन जब तक बारूद की गंध नहीं आती, तब तक कुत्ते भी इसका पता नहीं लगा पाते। टीम के सदस्यों ने बताया कि बीजापुर जैसी घटनाओं में बम को करीब 4 से 5 फीट नीचे लगाया जाता है।
कमांड आईईडी को 5 से 7 फीट अंदर गाड़ा जाता है
माओवादी सड़कों से करीब 5 से 7 फीट नीचे कमांड आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) लगाते हैं। इन आईईडी का वजन 40, 50, 60 या 70 किलो तक होता है। इन्हें इतना नीचे गाड़ा जाता है कि जवान इसे ढूंढ न पाएं या आईईडी को किसी भी तरफ से कोई नुकसान न पहुंचे और यह सुरक्षित रहे।
50-60 किलो की आईईडी की क्षमता इतनी होती है कि यह बख्तरबंद वाहन को भी उड़ा सकती है। बीजापुर में हुए विस्फोट में माओवादियों ने महज 60 किलो की आईईडी का इस्तेमाल किया था। विस्फोट के बाद वाहन समेत जवानों के शव करीब 500 मीटर दूर पड़े मिले।
जमीन के नीचे दबे बारूद से खतरा
गोलियों से ज्यादा बस्तर में जवानों को नक्सलियों से आमने-सामने की लड़ाई और जमीन के नीचे दबे बारूद से गोलियों से ज्यादा खतरा रहता है। कई बार जवान सर्च ऑपरेशन पर निकलते हैं। उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए नक्सली पेड़ों के अंदर या पगडंडी पर 1.5 से 2 फीट नीचे आईईडी गाड़ देते हैं। ये ज्यादातर 2, 3 या 5 किलो के छोटे प्रेशर आईईडी होते हैं। इन पर पैर पड़ते ही ये फट जाते हैं।
अच्छी मशीनें मिल जाएं तो हम नक्सलियों के मंसूबे नाकाम कर देंगे
बीडीएस जवान खेतू राम सोरी ने क्या कहा कि, अभी हम जिस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे हम करीब 2 फीट अंदर बड़ी आईईडी ढूंढ पाते हैं। ज्यादा गहराई में दबी आईईडी नहीं ढूंढ पाने की वजह से भी घटनाएं होती हैं। अगर हमें अच्छी मशीनें मिल जाएं तो हम नक्सलियों के और भी मंसूबों को नाकाम कर देंगे।
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यह टीम ऑपरेशन में सबसे आगे रहती है
बता दें कि, जब भी नक्सलियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चलाया जाता है, तो बीडीएस (बम डिस्पोजल स्क्वॉड) की टीम जवानों के पूरे जत्थे के आगे होती है। साथ में स्निफर डॉग भी होते हैं। ये ही रास्ता साफ करते हैं।
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