
बलरामपुर: दिव्यांग वैसे भी अपनी किस्मत की अंधेरे में जीवन यापन करते हैं, पहले तो उनको किस्मत ने मारा अब दिव्यांगों को जुल्मी सितम भी मार रहा है. दिव्यांगजनों को अगर सहानुभूति के साथ सहयोग भी मिल जाए तो उनके जीवन के अंधकार में कुछ उजाला जरूर आ सकता है, लेकिन बदकिस्मती के आगे दिव्यांग मुफलिसी और दोज़ख़ सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं वाड्रफनगर ब्लाक अंतर्गत निर्मल ग्राम पंचायत सरना की. जहां एक घर में दो दिव्यांग रहते हैं. मुरलीश्याम जन्म से ही पैरों से दिव्यांग हैं और दूसरा रामसजीवन जिसे जन्म से दिखाई नहीं देता है. दोनों रिश्ते में चाचा भतीजा लगते हैं, लेकिन शासन-प्रशासन से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित हैं.
गांव के सरपंच सचिव और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. हैरान करने वाली बात ये है कि सरकार और जिला प्रशासन बड़े-बड़े दावे करते नजर आते हैं, लेकिन धरातल में दिव्यांगों की जिंदगी में अंधेरा छाया हुआ है. साथ ही हमारे भारतीय संविधान में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए न जाने कितने गाइडलाइन बने हुए हैं, लेकिन उनमें ज्यादातर सुविधाएं कागजों में ही प्राप्त होती हैं.
आने जाने में लाचार हैं दोनों दिव्यांग
दिव्यांगता का दंश झेलते हुए कहीं आने जाने में भी बेबस और लाचार हैं. इसके बावजूद पानी लेने के लिए यह दोनों जोड़ी स्वयं ही कुएं तक जाते हैं, क्योंकि इनके लिए पानी कि भी कोई सुविधा नहीं है. 1 हैंडपंप था जो पंचायत की ओर से दिया गया था, लेकिन पिछले 1 साल से हैंडपंप भी खराब पड़ा हुआ है. इनके लिए पंचायत की ओर से शौचालय का निर्माण कराया गया, वह भी उपयोग लायक नहीं है. इन्होंने बताया कि दिव्यांगता पेंशन के नाम पर इन्हें महीने में 350 रुपए मिलते हैं, जिससे गुजर बसर करना मुश्किल है. आवागमन में मदद के लिए मोटराइज्ड ट्राई साइकिल भी अब तक मिली नहीं.
अब देखने वाली बात यह होगी कि इस खबर के प्रकाशित होने के बाद क्या इन्हें कुछ सुविधाएं मिलती हैं या फिर दिव्यांगों के लिए बनाई योजनाएं सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह जाती है.क्योंकि वादे सिर्फ किये जाते हैं, पूरे नहीं होते.