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400 ग्राम पंचायतों में मनरेगा में कमीनशखोरी ? गरियाबंद के सरपंचों को देना पड़ता है ‘अफसर टैक्स’, शातिर सचिवों को करोड़ों का काम, गरीब पंचायतों में सूखा, जानिए 5 टका चढ़ावे की कहानी ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में मनरेगा में कमीशनखोरी का खेल धड़ल्ले से जारी है। कहा जाता है कि जिले तक अफसर टैक्स पहुंचता है। इसके बाद पंचायतों को काम मिलता है, जो सचिव सरपंच शातिर हैं, उन्हें करोड़ों का काम मिलता है, जो सरपंच सचिव पहुंच वाले नहीं हैं, उनके पंचायत में सूखा पड़ा है। मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। अगर मजदूरों को काम मिला तो पेमेंट में अटका देते हैं, जिससे मजदूरों का मोह भंग हो गया। बताया जा रहा है कि पहले ये अफसर टैक्स 10 प्रतिशत था, जो अब 5 प्रतिशत में चल रहा है।

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क्या है पूरी कहानी परत-दर-परत समझिए ?

400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: गरियाबंद के आमामोरा व ओड़ पंचायत के आश्रित ग्राम हथौड़ाडीह ,नगरारा व कुकरार से कमार जनजाति के 100 से ज्यादा मजदूर परंपरागत काम न होने की वजह से पलायन कर गए हैं। इनके साथ आश्रम शाला में पढ़ने वाले 15 से ज्यादा बच्चे भी शामिल हैं। गांव में ज्यादातर घरों में ताला लटके हैं, कुछ घरों में बच्चे और बूढ़े नजर आए।

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मनरेगा में यहां काम की कमी

हथौड़ाडीह के ग्रामीण रूपसिंह कमार ने बताया कि मनरेगा में यहां काम की कमी है। हालात ऐसे बन जाते हैं कि घर में सब्जी भाजी जुटाना मुश्किल हो जाता है। बांस-बर्तन बना कर किसी तरह पहले गुजारा हो जाता था, लेकिन अब कच्चा माल नहीं मिल पाता। आंध्रप्रदेश के लोग दलालों के माध्यम से संपर्क करते हैं। एक-एक परिवार को 25-25 हजार का एडवांस पैसे दे जाते हैं।

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400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: जनजातियों के समुचित उत्थान के लिए प्रशासन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन का भले लाख दावा करें, पर कमार परिवार के घरों में लटक रहे ताले प्रशासन के दावों की सच्चाई बयां कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा परंपरागत कार्य को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है, वहीं मनरेगा कार्य पास करने के एवज में जिला पंचायत में चलने वाली कमीशनखोरी की गलत परंपरा भी पलायन की एक बड़ी वजह है।

ग्रामीणों ने बताई पलायन की वजह

भुगतान में देरी, खाता भी लिंक नहीं– दोनों पंचायत मिला कर लगभग 700 मजदूर इन पंचायत में हैं। डेढ़ सौ मजदूरों का खाता से आधार लिंक नहीं हैं। ऐसे में मस्टरोल क्रिएट तो होता है। कर मजदूरी का भुगतान खाता में नहीं जा पाता। लंबे समय भुगतान में लगने के कारण भी कई लोगों का काम से मोह भंग हो गया।

दूरी पर बसा, प्रशासन के साथ समन्वय नहीं

400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: आमामोरा व ओड़ पंचायत का अपना पंचायत सचिव नहीं है। धवलपुर के पंचायत सचिव गीता मरकाम को दोनों पंचायत का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।

400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: धवलपुर से इन पंचायतों की दूरी 30 किमी है। हाल ही में रास्ता बनना शुरू हुआ है। पहले यहां जाने के लिए दिन भर लग जाते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि सचिव सप्ताह भर में एक पंचायत को दो दिन ही समय दे पाते हैं। ऐसे में इनकी समस्या का उचित समाधान नही हो पाता।

परम्परागत काम ठप हुआ

कमार जनजाति के पलायन करने के पीछे उनके परम्परागत काम का ठप होना भी है। ग्रामीणों ने बताया कि बांस बर्तन बनाने पर पर्याप्त कमाई हो जाती थी, लेकिन उन्हें अब कच्चा सामग्री उपलब्ध नहीं होता। इनके विकास के लिए सालों साल कई काम हुए पर वास्तविक मदद पथरीली व पहुंच विहीन रास्ता होने के कारण फाइलों में अटक गई।

सरपंच बोले- सुस्त है सिस्टम, मटेरियल काम के लिए कमीशन देना पड़ता है

ओड़ पंचायत के सरपंच राम सिंह सोरी विशेष जनजाति के हैं। सोरी ने कहा कि वे सरपंच बन कर जनजाती के लिए भरपूर काम कराएंगे। बांस बर्तन बनाने के परंपरागत काम को भी आगे बढ़ाएंगे। सोरी ने कहा ऐसा वो नहीं कर सके क्योंकि 3 साल से ज्यादा हो गए उनकी खुद की दशा नहीं सुधार पाए। सरपंच ने हथौड़ाडीह व नागरार से हुए पलायन की बात स्वीकार करते हैं।

समस्या सुनने वाला भी कोई नहीं

मनरेगा में मजदूरी मूलक काम है, मटेरियल काम के तहत भवन निर्माण और रपटा का काम भी गांव पहुंच कलेक्टर ने दिया है, लेकिन काम करने वाले कोई नहीं है। उनकी समस्या प्रशासन तक ले जाने वाला कोई नहीं हैं। समस्या सुनने वाले भी नहीं है। मजदूर काम है पर मजदूर नहीं। मटेरियल काम इसलिए नहीं मिलता क्योंकि जिले में मांगे जाने वाले 5 प्रतिशत कमीशन देने में सक्षम नही हैं।

300 मजदूर में से 80 का खाता बैंक से लिंक नहीं

सरपंच ने बताया कि 300 मजदूर में से 80 का खाता बैंक से लिंक नहीं है। कई के जॉब कार्ड भी नहीं बने हैं। विधानसभा चुनाव के बाद ज्यादातर मजदूर पलायन कर गए हैं। राशन छोड़ के गए हैं इसलिए अपडेट हो गया, लेकिन आवास आबंटन की प्रक्रिया अधूरी है। ये लोग लोकसभा चुनाव तक नही आएंगे। जुलाई में ही आना होता है।

15 से ज्यादा छात्र भी पलायन सूची में शामिल

दोनों पंचायत में मौजूद आश्रम में 15 से भी ज्यादा स्कूली छात्र अपने माता-पिता के साथ पलायन कर गए हैं। इनमें से 10 ओड़ आश्रम के हैं। आश्रम अधीक्षक संतु राम ध्रुव ने बताया कि तेलंगाना जाने की सूचना पर डेढ़ महीने पहले बच्चों को लाने गए थे। भारी मशक्कत के बाद केवल दो बच्चों को ही वापस ला पाए। हमारे 8 बच्चे आज भी पलायन कर गए पालकों के साथ हैं।

मनरेगा में कार्य आबंटन की समीक्षा की जरूरत

400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: कांग्रेस सरकार के समय पंचायत से संचालित होने वाली निर्माण कार्य की कई योजनाएं बंद हो गई थी। रोजगार गारंटी के कार्य ही एक मात्र विकल्प था, लिहाजा इस काम की मांग बढ़ गई। काम के दो कैटेगरी थे। मजदूर मूलक के बजाए सामग्री पर व्यय होने वाले काम को पाने कमीशन का रिवाज शुरू हो गया।

कांग्रेस कार्यकाल में 10 प्रतिशत तक कमीशन 

कांग्रेस कार्यकाल में इस काम के लिए 10 प्रतिशत तक कमीशन दिए जाते थे, जो इसे पाने में सक्षम थे उनके पंचायतों में जिला पंचायत काफी मेहरबान था। वहीं जो टास्क पूरा नहीं कर पाते थे, उन्हें मजदूरी मूलक काम थमा दिया जाता था। इस काम को कराने में भी पंचायत ज्यादा रुचि नहीं ले पाते थे।

बीजेपी कार्यकाल में 5 प्रतिशत कमीशन

400 Gram Panchayats work in commission in Gariaband: सरकार बदलने के बाद कई सिस्टम बदले गए, लेकिन मनरेगा में कमीशन का खेल 10 प्रतिशत से घट कर 5 प्रतिशत हुआ। कमीशन लेने की पुष्टि या शिकायत अब तक नहीं हुई है, लेकिन कार्य आबंटन की समीक्षा करने से पता चलेगा कि कई पंचायत ऐसे हैं जो अनुपात से ज्यादा मटेरियल फायदेमंद काम पा गए, लेकिन कई पंचायत आज भी ऐसे काम के लिए तरसते दिखेंगे।

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