श्रीकांत जायसवाल, कोरिया। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ में भूपेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा योजना की जमकर खिल्ली उड़ाई गई है. मलगा गांव में नरवा का निर्माण बीते वर्ष किया गया था, जो महज खानापूर्ति था. इस निर्माण कार्य को पहुंच विहीन स्थल में कराया गया है.
पहाड़ के टीले पर एक सपाट बड़े मैदान को करीब 60 से 70 मीटर लंबा-चौड़ा कर एक फिट खोद दिया गया, फिर उसी की मिट्टी से तीन तरफ करीब डेढ़ मीटर ऊंचा मेड़ बनाकर एक मुहाने को बिना मेड़ के ही छोड़ दिया गया है, जो बहुत ही बड़ी अनियमितता को दर्शाता है.
इतना ही नहीं इस नरवा के मेड़ को सुरक्षित रखने के लिए पत्थरों से मेड़ की दोनों ओर साइड पिचिंग की जाती, उसका भी कार्य नहीं किया गया है. इस निर्माण कार्य के जिस स्थल का चयन किया गया है, वो बिल्कुल ही गलत और योजना के उद्देश्य के विपरीत है.
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बरसात का जमा थोड़ा सा कीचड़ वाला पानी महज थोड़ी सी धूप में ही सूखने की ओर चल पड़ा है. अब अगर नरवा योजना के उद्देश्य पर गौर करें, तो मौका मुआयना यही कहता है कि आने वाली गर्मी की धूल वाली आंधी या फिर तेज बारिश का पानी शायद इस नरवा के मेड़ को बगल की खाई में ना धकेल दे. फिर बचा रह जाएगा, तो सिर्फ और सिर्फ सपाट मैदान.
भ्रष्टाचार छुपाने नहीं दी जाती जानकारी
आमजन या कोई आरटीआई कार्यकर्ता जब मनेंद्रगढ़ वन मंडल के अधिकारियों के कार्यालय से जानकारी मांगता है, तो भ्रष्टाचार उजागर न हो जाए, इसलिए जानकारी ही नहीं दी जाती है.
ग्राउंड जीरो से मिले तथ्यों पर अगर उच्चाधिकारियों से जांच कराने की बात की जाए, तो विभाग के अधिकारी खुद स्थल जांच करने चले आते हैं. वह भी मामला उजागर साझा करने वालों को बिना जानकारी दिए.
अन्यत्र स्थल निरीक्षण का जांच प्रतिवेदन लिखकर शिकायत गलत बता दिया जाता है. जिसके बाद अगर कोई भी वर्ग वन विभाग के भ्रटाचार को उजागर करने की कोशिश भी करता है, तो यही विसंगतियां सामने बनी रहती हैं. भ्रष्टाचार अनवरत फलता फूलता रहता है.
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