गिरीश जगत, गरियाबंद।गड्ढामुक्त किए जाने को लेकर किए जा रहे तमाम दावे के बाद भी सड़कों की दशा नहीं सुधर रही है. सड़कों पर हुए गड्ढों से राहगीरों के पांव छिल जा रहे हैं. बदहाल सड़कों पर जनता बेहाल हो रही है, तो जिम्मेदार अनजान बने हैं. सड़कों की बदहाली से एक ओर जहां लोगों को आवागमन में भारी परेशानी उठानी पड़ रही है. वहीं क्षतिग्रस्त सड़कों पर चलने से लोगों के वाहन बार-बार खराब हो रहे हैं. स्कूली बच्चों को आने-जाने में तकलीफें हो रही है. नेशनल हाईवे कीचड़ से भरा पड़ा है, जिम्मेदार और ठेकेदार मौज काट रहे हैं, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
क्षेत्रवासियों को हो रही तकलीफें
दरअसल, ये कहानी गरियाबंद की है, जहां बदहाली खुद पर आंसू बहा रही है. देवभोग क्षेत्रवासियों को लंबे इंतजार के बाद एनएच 130 रोड की सौगात मिली थी, लेकिन कार्य कछुए की चाल से होने के कारण क्षेत्रवासियों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
सड़क पर गिट्टी और गिट्टी डालकर छोड़ा
सड़क पर गिट्टी और गिट्टी डालकर छोड़ दिया गया है. आज तक पिच नहीं कराया जा सका. इस कारण जगह-जगह उखड़ी-बिखरी गिट्टियां और जानलेवा हो रही हैं. गड्ढों से कब कौन हादसे का शिकार हो जाए कहा नहीं जा सकता. 130 नेशनल हाईवे का कार्य कछुए की चाल पर है. स्कूली बच्चे कीचड़ से भरे नेशनल हाईवे 130 सी में चलने को मजबूर हैं.
घटिया मेटेरियल और मुरम ने किया हलाकान
बता दें कि देवभोग ओडिशा बॉर्डर से मादंगमुड़ा तक करीब 34 किलोमीटर की दूरी का 74 करोड़ लागत से एनएच 130 रोड का निर्माण हो रहा है, जिसमें ओडिशा के ठेकेदार के द्वारा लगातार मनमर्जी करते देखा जा रहा है. कार्य धीमी गति से कम संसाधन, कम मजदूर लगाकर घटिया मेटेरियल और मुरम की जगह काली मिट्टी और सफेद मिट्टी डाली जा रही है.
अफसरों का कोई नियंत्रण नहीं है, जिसके चलते ठेकेदार के द्वारा अपनी मनमानी करते हुए गुणवत्ता को जरा सी भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है. मुड़ागांव के पास स्कूली बच्चे कीचड़ को पार करके स्कूल जाने में मजबूर हैं. सड़क किनारे के रहवासी और दुकानदारों में इसके चलते काफी नाराजगी है.
मिट्टी डालकर बना रहे सड़क
धीमी गति से बनने और जगह जगह मिट्टी होने के कारण पानी जाम हो गया है. इतना पानी जम गया है कि लोग अपनी गाड़ी, सायकल धोते भी नजर आ रहे हैं. कदलीमुडा चौक पर इससे साफ जाहिर होता है कि गुणवता पर ध्यान नहीं दिया जा है.
कभी भी हादसे का हो सकते हैं शिकार
वहीं ग्रामीणों ने कहा कि इंजीनियर महीने में एक दो बार आते हैं. कभी तो आते ही नहीं, जिसके कारण ये हाल हैय अब हम बदहाली में रह रहे हैं. बच्चे रोजाना कीचड़ में चलने को बेबस हैं. राहगीर हादसे का कभी भी शिकार हो सकते हैं, लेकिन ठेकेदार की लापरवाही जिम्मेदारों को नहीं दिख रही है.
क्या बोले NH के इंजीनियर ?
वहीं मामले में NH के इंजीनियर से पूछा गया तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि मैं बोल देता हूं नायडू को. इतना कहकर पल्ला झाड़ लिए. हकीकत ये है कि इंजीनियर इस रोड की ओर झांकने नहीं आते. सब सांठगांठ से कहानी गढ़ी जा रही है, जिससे लोगों को परेशानी हो रही है.
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