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रागी की खेती से बदल रही तकदीर: 2200 हेक्टेयर रकबे पर किसानों ने लगाया फसल, आर्थिक समृद्धि की ओर अन्नदाता

गिरीश जगत, गरियाबंद। लघु धान्य फसलों को बढ़ावा देने के लिए शासन द्वारा लगातार कार्य किया जा रहा है, जिसका असर अब जिले के किसानों के खेतों में दिखायी देने लगा है. कुछ वर्षाे पूर्व किसान अधिकांश रकबे पर धान की फसल लिया करते थे, लेकिन अब वे सरकार की किसान हितैषी योजनाओं से प्रभावित होकर अन्य फसलों की ओर भी आगे आ रहे हैं.

छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है. जहां कोदो, कुटकी और रागी सहित अन्य मिलेट्स फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है. किसानों को नकदी फसल लेने के लिए प्रोत्साहित करने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस वर्ष मिलेट्स वर्ष घोषित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों के जीवन में बदलाव दिखायी देने लगा है.

किसान आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहे हैं. प्रदेश में शुरू किए गए मिलेट मिशन का सार्थक परिणाम है कि अब किसान धान के बदले रागी, कोदो और कुटकी की फसल लेने लगे हैं. गरियाबंद जिले में लगभग 2200 हेक्टेयर रकबा में धान के बदले कोदो-कुटकी और रागी सहित अन्य फसल ले रहे हैं.

शासन की इन्ही योजनाओं से प्रभावित होकर गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड के ग्राम सेंदर निवासी किसान डामेन्द्र कुमार देशमुख ने बताया कि वे पहली बार कृषि विभाग के मार्गदर्शन में 1 हेक्टेयर में रागी की फसल लेना शुरू किया और बीज उत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत बीज निगम में पंजीयन करवाया.

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष रबी सीजन में धान की खेती किया करते थे, जिसमें अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता पड़ती थी और कीट-बिमारी का प्रकोप सहित खाद-दवाई भी अधिक मात्रा में लगता था.

रागी की फसल में न तो पानी ज्यादा लगा और न ही कीट-बिमारी नहीं लगा और न ही खाद-दवाई अधिक लगा. उन्होंने बताया कि 1 हेक्टेयर में रागी की फसल लेने पर उन्हें 14.40 क्विंटल उत्पादन हुआ, जिसमें से वे 12.15 क्विंटल को बीज निगम में 5700 रूपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा.

इससे उन्हें 69 हजार 255 रूपये की आमदनी हुई. इसके लिए कृषि विभाग द्वारा उन्हें निःशुल्क बीज प्रदान किया गया था. किसान डामेन्द्र ने रागी की विशेषता के बारे में बताया कि यह बहुत अधिक पौष्टिक और लाभप्रद है.

इस फसल के लिए जहां पानी और समय कम लगता है, वहीं यह फसल 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसमें ज्यादा देखरेख करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. इसी वजह से किसान डामेन्द्र देशमुख से प्रेरित होकर अन्य क्षेत्र के किसान भी लघुधान्य फसलों को लगाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं.

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