समान नागरिक संहिता का मसला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। पहले उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने समिति बनाई। फिर अक्टूबर में गुजरात में। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए समिति बनाने की घोषणा की है। पिछले दो हफ्तों में असम और कर्नाटक की सरकारों ने भी समान नागरिक संहिता को लागू करने के संकेत दिए हैं। भाजपा इसके लिए प्रतिबद्ध है और अब अपनी सरकारों वाली राज्यों के जरिये दिल्ली तक यह मुद्दा लाने का रास्ता तलाश रही है। राजनीतिक पंडित इसे भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर देख रही है।
आइये, आसान शब्दों में समझते हैं कि यह समान नागरिक संहिता क्या है? शिवराज सिंह चौहान ने क्या कहा? अन्य राज्यों में इस मुद्दे पर क्या हुआ है और यह मुद्दा भाजपा के लिए अहम क्यों है?
समान नागरिक संहिता क्या है?
- संविधान के आर्टिकल-44 में समान नागरिक संहिता की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून लागू करने की कोशिश करेगी। हालांकि, ये कोशिश आज तक सफल नहीं हो सकी है।
- समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के हर नागरिक पर एक कानून लागू होगा। देश में शादी से लेकर तलाक, गुजारा भत्ता से लेकर बच्चों को गोद लेने तक के नियम एक जैसे होंगे।
समान नागरिक संहिता लागू करने के पीछे क्या तर्क हैं?
- सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिकाओं में सभी धर्मों में तलाक और गुजारा भत्ता एक-सा करने की मांग की गई है। देश में अलग-अलग धर्मों में शादी, जमीन-जायदाद के उत्तराधिकार, दत्तक लेने, तलाक और गुजारा-भत्ते को लेकर अलग-अलग पांच कानून हैं। आदिवासियों, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड के लोगों को अलग रियायतें हैं। इन सभी कानूनों की जगह भाजपा देश के हर नागरिक के लिए एक कानून लागू करने की पैरवी कर रही है।
- इस समय हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोगों पर हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 के तहत तलाक और गुजारा भत्ता मिलता है। मुसलमानों के मामले वैध विवाह और निकाह से पहले हुए समझौते की स्थिति के मुताबिक निपटाए जाते हैं। उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है। ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोगों पर पारसी विवाह व तलाक कानून 1936 लागू होता है। जब दो अलग-अलग धर्मों के लड़का-लड़की शादी करते हैं, तो तलाक से जुड़े मामलों के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 है।
- इसी तरह कहीं जायदाद में लड़कियों को हिस्सा नहीं दिया जाता। कहीं तलाक लेने से पहले एक साल समझौते के लिए रखा जाता है तो कहीं दो साल। इन मुद्दों को मानवाधिकार से जोड़कर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल हुई हैं। इन सभी याचिकाओं का मुद्दा यह है कि समान नागरिक संहिता लागू की जाए, ताकि इन मुद्दों का समाधान निकाला जा सके।
आखिर क्या कहा शिवराज ने, जिस पर शुरू हुई चर्चा?
- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुरुवार को सेंधवा में थे। उन्होंने कहा कि भारत में अब समय आ गया है कि एक समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। एक से ज्यादा शादी क्यों करे कोई? एक देश में दो विधान क्यों चले, एक ही होना चाहिए। मध्यप्रदेश में मैं कमेटी बना रहा हूं। समान नागरिक संहिता के तहत एक पत्नी रखने का अधिकार है, तो एक ही पत्नी सबके लिए होनी चाहिए।
- शिवराज के इस ऐलान के बाद सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि मध्यप्रदेश में भी अगले साल के विधानसभा चुनावों में समान नागरिक संहिता मुद्दा बनेगा। कांग्रेस भी यही कह रही है कि समान नागरिक संहिता लागू करने में भाजपा की रुचि कम है और वह इसका इस्तेमाल सिर्फ चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए करना चाह रही है।
समान नागरिक संहिता क्यों है भाजपा के लिए अहम?
- 1980 में स्थापना के बाद से तीन मुद्दे भाजपा के लिए अहम रहे हैं। इनमें अयोध्या में राम मंदिर और कश्मीर से धारा 370 को हटाना प्रमुख था। यह काम पूरे हो चुके हैं। अब तीसरा और अहम मुद्दा रह गया है- समान नागरिक संहिता। और, भाजपा इस मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनावों में भुनाना चाहती है।
- पिछले हफ्ते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि उनकी सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने को प्रतिबद्ध है। जनसंघ के समय से ही पार्टी का यह मुख्य मुद्दा रहा है। उनका कहना है कि संविधान सभा ने संसद और राज्यों को उचित समय पर समान नागरिक संहिता लाने की सलाह दी थी। एक धर्मनिरपेक्ष देश में कानून किसी धर्म के आधार पर नहीं हो सकता। कुछ राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाई है। वह सभी धर्मों के लोगों की राय को लेकर कानून लागू करने की संभावनाओं को टटोल रही है।
- दरअसल, इस मामले में उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने मई में समिति बनाई। गुजरात में चुनावों से एक महीने पहले 29 अक्टूबर को समिति बनाई गई। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने जीतकर आने पर समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा की है। कर्नाटक और असम की सरकारों ने भी समान नागरिक संहिता को लागू करने के संकेत दिए हैं।
- गोवा को 1961 में आजादी मिली थी। तब से ही यहां समान नागरिक संहिता लागू है। इस वजह से गोवा इकलौता राज्य है, जहां सभी नागरिकों के लिए एक-सा कानून है। भाजपा इसी को आधार बनाकर अपनी सरकारों वाले राज्यों में इसे लागू करवाना चाहती है। निश्चित तौर पर 2024 के लोकसभा चुनावों और उससे पहले के विधानसभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा रहेगा।
केंद्र सरकार इस मसले पर क्या कर रही है?
- केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले सत्र के दौरान संसद में कहा था कि ‘समान नागरिक संहिता का मसला विधि आयोग को देखना है।’ इस वजह से गुजरात और हिमाचल प्रदेश में समितियों की घोषणा होने के तत्काल बाद केंद्र सरकार ने 22वें विधि आयोग के सदस्यों की नियुक्ति भी कर दी। ताकि इस मुद्दे पर फिर से चर्चा की जा सके।
- दरअसल, मोदी सरकार में ही विधि आयोग ने 2018 में कहा था कि समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है। इसकी जगह पर्सनल लॉ को मजबूती देने की जरूरत है। इसके बाद दो साल तक तो आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी खाली ही रही। नवंबर में ही नियुक्ति हुई है और इसे समान नागरिक संहिता को लागू करने की तैयारी देखा जा रहा है।
- हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी को 22वें विधि आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। जस्टिस केटी शंकरन, प्रोफेसर आनंद पालीवाल, प्रोफेसर डीपी वर्मा, प्रोफेसर राका आर्य और एम करुणानिधि इस आयोग के सदस्य होंगे।