स्लाइडर

MP News: ओरछा के रामराजा दरबार में जमकर थिरके मोनिया, गोवर्धन पूजा पर बुंदेलखंड की संस्कृति की दिखी झलक

ख़बर सुनें

ओरछा के रामराजा मंदिर में बुधवार को गोवर्धन पूजा और भाईदूज के अवसर पर  बुंदेखण्ड के लोकनृत्य मोनिया की अद्भुत छटा नजर आई। सुबह से ही रामराजा सरकार के दरबार में मोनिया नृत्य की धूम मची रही। दरअसल बुन्देलखण्ड में दीपावली के अवसर पर मोनिया नृत्य की प्रस्तुति के लिए कलाकार एक माह पूर्व से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं और दीपावली की सुबह तीर्थ स्थानों पर पहुंचकर मोनिया नृत्य को नाच गाकर प्रस्तुत करते हैं।

गोवर्धन पर्व की सुबह से ही मोनिया अपनी-अपनी टोलियों के साथ रामराजा नगरी ओरछा पहुंचे। सबसे पहले बेतवा नदी के तट पर स्नान कर पूजा अर्चना कर श्री रामराजा सरकार के दरबार में माथा टेका, फिर अपना लोकनृत्य मन्दिर परिसर में प्रस्तुत किया, जिसे लोगों द्वारा विभिन्न टोलियों के अलग-अलग कर्तव्य देखकर खूब सराहा गया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली चुकी है पहचान
बुन्देलखण्ड के लोकनृत्य के बारे जानकारी देते हुए पं वीरेन्द्र विदुआ ने बताया कि मोनिया नृत्य खासतौर पर बुन्देलखण्ड का एक लोकनृत्य है। इस नृत्य को अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक मंचों पर प्रस्तुत किया जाने लगा है। आज भी बुन्देलखण्ड के अधिकांश गांवो में इस नृत्य की परम्परा देखने को मिल जाती है। बड़े मंचो पर इस नृत्य को खूब सराहना मिल चुकी है। मोनिया नृत्य दिवाली के त्यौहार के साथ ही तीर्थ स्थलों पर जाकर टोलिया इस नृत्य की शुरुआत करते हैं और फिर अपने निर्धारित गांवो में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

लाठी और डंडों से किया जाता है नृत्य
नगर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति  नागरिक लक्ष्मण सिंह यादव (105 वर्ष) ने बताया कि यह नृत्य बुंदेलखंड में विशेषकर सागर, झाँसी टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना  जिले के लोगों के द्वारा मनाया जाता है। यह नृत्य पुरुष प्रधान है इसमें मात्र पुरुष ही भाग लेते हैं। इस नृत्य का केंद्र वीर रस प्रधान होता है। मोनिया नृत्य में लाठी और डंडों का कौशल संगीत के साथ देखते ही बनता है। मोनिया नृत्य में ग्रामीण लोग रावला को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मोनिया नृत्य भी कहते है। इसमें सभी कलाकार गोला बनाकर नाचते गाते हैं इस नृत्य का मुख्य पर्व दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के समय होता। इसमें कलाकार लकड़ी के दो डंडे हाथ में लेकर नाच-नाच कर इन डंडों से खेलते हैं। इसमें ढोलक, मजीरा, रमतूला, झीका, नगारा आदि प्रमुख वाद्य यन्त्र हैं।

सैरा नृत्य के नाम से भी है प्रसिद्ध
इसी प्रकार पंडित रजनीश दुबे बताते हैं कि यह नृत्य कृष्ण एवं उनके साथी ग्वालों का रूपक है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं यह सभी कलाकार मंडली के रूप में तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर अपने नाच गाने का प्रदर्शन करते हैं ।सभी कलाकार एक वेशभूषा में चुस्त परिधान जांघिया, कुर्ता, बनियान धारण करते हैं। कमर में बजने वाली घुंघरुओं की माला पहनते हैं तथा मोरपंख हाथ में लिए कुछ सर पर धारण करते हैं।

विस्तार

ओरछा के रामराजा मंदिर में बुधवार को गोवर्धन पूजा और भाईदूज के अवसर पर  बुंदेखण्ड के लोकनृत्य मोनिया की अद्भुत छटा नजर आई। सुबह से ही रामराजा सरकार के दरबार में मोनिया नृत्य की धूम मची रही। दरअसल बुन्देलखण्ड में दीपावली के अवसर पर मोनिया नृत्य की प्रस्तुति के लिए कलाकार एक माह पूर्व से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं और दीपावली की सुबह तीर्थ स्थानों पर पहुंचकर मोनिया नृत्य को नाच गाकर प्रस्तुत करते हैं।

गोवर्धन पर्व की सुबह से ही मोनिया अपनी-अपनी टोलियों के साथ रामराजा नगरी ओरछा पहुंचे। सबसे पहले बेतवा नदी के तट पर स्नान कर पूजा अर्चना कर श्री रामराजा सरकार के दरबार में माथा टेका, फिर अपना लोकनृत्य मन्दिर परिसर में प्रस्तुत किया, जिसे लोगों द्वारा विभिन्न टोलियों के अलग-अलग कर्तव्य देखकर खूब सराहा गया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली चुकी है पहचान

बुन्देलखण्ड के लोकनृत्य के बारे जानकारी देते हुए पं वीरेन्द्र विदुआ ने बताया कि मोनिया नृत्य खासतौर पर बुन्देलखण्ड का एक लोकनृत्य है। इस नृत्य को अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक मंचों पर प्रस्तुत किया जाने लगा है। आज भी बुन्देलखण्ड के अधिकांश गांवो में इस नृत्य की परम्परा देखने को मिल जाती है। बड़े मंचो पर इस नृत्य को खूब सराहना मिल चुकी है। मोनिया नृत्य दिवाली के त्यौहार के साथ ही तीर्थ स्थलों पर जाकर टोलिया इस नृत्य की शुरुआत करते हैं और फिर अपने निर्धारित गांवो में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

लाठी और डंडों से किया जाता है नृत्य

नगर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति  नागरिक लक्ष्मण सिंह यादव (105 वर्ष) ने बताया कि यह नृत्य बुंदेलखंड में विशेषकर सागर, झाँसी टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना  जिले के लोगों के द्वारा मनाया जाता है। यह नृत्य पुरुष प्रधान है इसमें मात्र पुरुष ही भाग लेते हैं। इस नृत्य का केंद्र वीर रस प्रधान होता है। मोनिया नृत्य में लाठी और डंडों का कौशल संगीत के साथ देखते ही बनता है। मोनिया नृत्य में ग्रामीण लोग रावला को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मोनिया नृत्य भी कहते है। इसमें सभी कलाकार गोला बनाकर नाचते गाते हैं इस नृत्य का मुख्य पर्व दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के समय होता। इसमें कलाकार लकड़ी के दो डंडे हाथ में लेकर नाच-नाच कर इन डंडों से खेलते हैं। इसमें ढोलक, मजीरा, रमतूला, झीका, नगारा आदि प्रमुख वाद्य यन्त्र हैं।

सैरा नृत्य के नाम से भी है प्रसिद्ध

इसी प्रकार पंडित रजनीश दुबे बताते हैं कि यह नृत्य कृष्ण एवं उनके साथी ग्वालों का रूपक है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं यह सभी कलाकार मंडली के रूप में तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर अपने नाच गाने का प्रदर्शन करते हैं ।सभी कलाकार एक वेशभूषा में चुस्त परिधान जांघिया, कुर्ता, बनियान धारण करते हैं। कमर में बजने वाली घुंघरुओं की माला पहनते हैं तथा मोरपंख हाथ में लिए कुछ सर पर धारण करते हैं।

Source link

Show More
Back to top button