स्लाइडर

Diwali 2022: मध्यप्रदेश में स्थित है विश्व का इकलौता गज लक्ष्मी मंदिर, दीवाली पर किए जाते हैं विशेष अनुष्ठान

धन की देवी मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है कहा जाता है कि दीपावली की रात लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर भक्तों के घर पहुंचती हैं। देश के कई मंदिरों में मां लक्ष्मी कमल ये आसन या फिर उल्लू पर विराजमान हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन में मां लक्ष्मी हाथी पर सवार हैं। माता के इस स्वरूप की पूजा गज लक्ष्मी के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि पूरे विश्व में उज्जैन का गज लक्ष्मी मंदिर इकलौता मंदिर है जहां गज लक्ष्मी की दुर्लभ प्रतिमा स्थित है।

दो हजार साल पुराना है मंदिर

धार्मिक नगरी उज्जैन के सर्राफा के पेठ में स्थित मां गज लक्ष्मी का मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है। मंदिर में मां लक्ष्मी अपने वाहन गज यानि की हाथी पर सवार हैं। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों की मां कुंती ने यहीं मां लक्ष्मी की पूजा की थी। गज लक्ष्मी की कृपा से ही पांडवों को अपना राज-पाट वापस मिला था।

दीपावली पर होती है विशेष पूजा

उज्जैन के गज लक्ष्मी मंदिर में दीवाली के दिन विशेष पूजा की जाती है। इस दिन माता का कई क्विंटल दूध से अभिषेक किया जाता है। साथ ही नेवैद्य में 56 भोग लगाए जाते हैं। माता के अभिषेक वाला दूध भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। कहा जाता है कि मंदिर में पूजा अर्चना का दौर महाभारत काल से जारी है।

मंदिर में लिखा जाता है पहला बही-खाता

दीवाली के दिन कई व्यापारी मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर में कई वर्षों से बही खाते लिखने की भी परंपरा जारी है। आज भी यहां कई व्यापारी पहला बही खाता मंदिर में लिखने के लिए पहुंचते हैं।

प्रसाद में बांटे जाते हैं सिक्के

गज लक्ष्मी मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों का मानना है कि यहां आने से कभी घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती। साल भर मां गज लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। मंदिर में भक्तों को प्रसाद में बरकत के लिए सिक्के बांटे जाते हैं। सुहागन महिलाओं को कंकू और चूड़ियां भेंट की जाती हैं। शुक्रवार को मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु मां गज लक्ष्मी के दर्शन पहुंचते हैं।

भगवान विष्णु की दशावतार प्रतिमा भी है मौजूद

उज्जैन के गज लक्ष्मी मंदिर की एक खासियत ये भी है कि यहां भगवान विष्णु की करीब दो हजार साल पुरानी दशावतार की प्रतिमा स्थित है। काले पत्थर से बनी ऐसी प्रतिमा देश में कहीं और देखने को नहीं मिलती। प्रतिमा में भगवान विष्णु के दशावतार बने हैं।

मंदिर से जुड़ी महाभारत की कथा

कहा जाता है कि जब अज्ञातवास के दौरान पांडव जंगलों में भटक रहे थे, तब माता कुंती अष्ट लक्ष्मी पूजन के लिए परेशान थीं। पांडवों ने जब मां को परेशान देखा तो देवराज इंद्र से प्रार्थना की। पांडवों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने स्वयं अपना ऐरावत धरती पर भेज दिया। इसी इंद्र के हाथी पर मां लक्ष्मी स्वयं विराजमान हुई और माता कुंती ने अष्ट लक्ष्मी की पूजन किया। तो वहीं दूसरी ओर इंद्र ने भारी बारिश की जिसमें कौरवों का मिट्टी से बना हाथी बह गया और वह पूजन नहीं कर पाए। जबकि इस पूजा से प्रसन्न होकर मां गज लक्ष्मी के आशीष से पांडवों को उनका खोया राज्य वापस मिला।

Source link

Show More
Back to top button