ऐसे में संकेत हैं कि भूपेश बघेल सरकार एसटी के लिए 32 फीसदी, एससी के लिए 12 फीसदी और ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण पर विचार कर रही है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी कोटा के साथ, यह आरक्षण को 81 फीसदी तक ले जाएगा। 2012 के आदेश में आदिवासियों को लिए 32 फीसदी, अनूसूचित जाति के लिए 12 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 14 फीसदी आरक्षण दिया गया था। एचसी के फैसले के बाद आदिवासियों के लिए कोटा 20 फीसदी है, एससी कोटा 16 फीसदी हो गया है और ओबीसी आरक्षण वही है जो अविभाजित मध्यप्रदेश में था।
वहीं, सीएम भूपेश बघेल ने बार-बार कहा है कि उनकी सरकार कुल जनसंख्या में विभिन्न श्रेणियों के अनुपात के आधार पर आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ है। विधेयक पेश करने के अलावा, कांग्रेस सरकार एक प्रस्ताव भी ला सकती है, जिसमें केंद्र से छत्तीसगढ़ के आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया जा सकता है, जिसमें केंद्रीय और राज्य कानून शामिल हैं, जिन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
वहीं, जब अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को 32 फीसदी पर बहाल करने की बात आती है तो सत्तारूढ़ कांग्रेस, विपक्षी बीजेपी और अन्य राजनीतिक दल एक ही जगह नजर आते हैं। कांग्रेस सरकार 24 नवंबर को होने वाली कैबिनेट की बैठक में संशोधन विधेयकों के मसौदे को अंतिम रूप दे सकती है।
कांग्रेस सरकार यह कदम ऐसे समय में उठाने जा रही है, जब आदिवासी समुदाय प्रदेश में 32 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव में एक साल का वक्त बचा है। ऐसे में सरकार कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहती है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की है और इस मुद्दे को हर करने के अपने विकल्पों पर विचार कर रही है।
इसे भी पढ़ें